शनिवार, 19 जनवरी 2019

👉 अपने दोषों को भी देखा कीजिए! (भाग 2)

उसी बात को स्नेह और आत्मीयतापूर्वक कहें तो आपके संबंध भी अच्छे बने रहते हैं और आपकी बात भी मान ली जाती है। ऐसे समय किन्हीं व्यक्तियों या घटनाओं के उदाहरण प्रस्तुत करें तो प्रभाव और भी परिपुष्ट होगा किन्तु यह ध्यान बना रहे कि आपकी बात पूर्ण आत्मीयता के साथ कही जा रही है। इतने पर भी शत प्रतिशत यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वह आपकी बात मान ही ले, क्योंकि उसकी अपनी धारणा भी तो किसी आधार पर टिकी होती है। उसके सिद्धान्त में बल है अथवा नहीं, यह अलग बात है।

बात सिर्फ मान्यता की है। ऐसे समय उसे दुष्ट मानने की अपेक्षा यह देखना अधिक श्रेयस्कर है कि उसके ज्ञान या अनुभव में कमी है, या उसे प्रभावित करवाने की क्षमता का आप में अभाव है। इस प्रकार के विचार से आप उत्तेजित भी नहीं होते, क्रोध भी नहीं आता और प्रतिशोध या बदला लेने की हानिकारक भावना भी नहीं बनती। आपके संबंध भी ज्यों के त्यों बने रहते हैं। उनमें भी किसी प्रकार का तनाव पैदा नहीं होता।

मनुष्य को सम्मान उसकी योग्यता-अयोग्यता, गुरुता, कार्यक्षमता और उपयोगिता के आधार पर मिलता है। पात्रत्व के अभाव में आपको सम्मान मिलने की आशा नहीं बाँधनी चाहिए। अहंकारवश कई व्यक्ति पात्रता न होते हुए भी दूसरों से भारी सम्मान की आशा करते रहते हैं और जब वह नहीं मिलता है तो दूसरों को दोष देने लगते हैं। उन्हें अपना विरोधी शत्रु या ईर्ष्यालु मानने लगते हैं। कई व्यक्ति इसी अहंकारवश अनावश्यक शेखी-खोरी करते रहते हैं और जो उनसे सहमत नहीं होता उससे क्षुब्ध होते हैं। ऐसी झूठी शैली जताने से आपका सम्मान गिर जायेगा और दूसरों से प्रतिष्ठा पाने की आपने जो आशा की थी उससे भी वंचित बने रहेंगे।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 40
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/July/v1.40

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...