शनिवार, 3 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 3 June 2023

🔷 श्रम में शर्म, आलस्य या प्रमाद अधिक घर करते गये तो हमारी प्रगति अवरुद्ध होना निश्चित है। आलस्य की बढ़ती हुइ्र्र प्रवृत्ति व श्रम से जी चुराने की आदत हमें ऐसी स्थिति में ले जायेगी, जहाँ जीवन जीना भी कठिन होगा। प्रगति की किसी भी दिशा में अग्रसर होने के लिए सबसे पहला साधन श्रम ही है। जो जितना परिश्रमी होगा, उतना ही उन्नतिशील होगा।

🔶 जीवन एक संग्राम है, जिसमें विजय केवल उन्हें ही मिलती है, जो दृढ़ और उन्नत मनोबल का कवच धारण किये रहते हैं और जो अपने निहित पराक्रम तथा पौरुष की उत्कृष्टता सिद्ध करते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य ठीक हो, पर मनोबल न हो तो आदमी मानसिक आघात से अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। अविकसित मनोबल के कारण हमारी योजनाएँ सफल नहीं होतीं। हमारा मन हारा रहता है तो शरीर भी हारता है।

🔷 मनुष्य सामर्थ्य का पुंज  और साहस का धनी है। उसमें न योग्यता की कमी है, न प्रतिज्ञा की। उसे विकसित किया जा सके तो छोटा दिखने वाला व्यक्ति अगले दिनों बड़ा बन सकता है। जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार हो और जिम्मेदारी उठाने का साहस करे तो उसका निर्वाह करने का बल भी भीतर से ही प्रकट होगा। दूसरे लोग सहायता भी करेंगे और यह सिद्ध होगा कि अपनी तुच्छता और असमर्थता की आशंका निरर्थक थी और सफलता का डर जो बार-बार संकोच में डालता था सर्वथा निराधार था।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दोष-दृष्टि को सुधारना ही चाहिए (भाग 2)

देखिये और जरा ध्यान से देखिये कि आपके अन्दर ‘दोष-दर्शन’ करने की दुर्बलता, तो नहीं घर पर बैठी है। क्योंकि ‘दोष-दर्शन’ का दृष्टिकोण भी जीवन को कुछ-कुछ ऐसा ही बना देता है। दोष-दर्शन और संतोष, दोष-दर्शन और प्रसन्नता, दोष-दर्शन तथा सामंजस्य का नैसर्गिक विरोध है। दोष-दृष्टि मनुष्य के हृदय पर उसके मानस पर एक ऐसा आवरण है, जो न हो बाहर की प्रसन्न- किरणों को भीतर प्रतिबिम्बित होने देता है और न भीतर का उल्लास बाहर ही प्रकट होने देता है। इसे मनुष्य एवं आनन्द के बीच एक लौह दीवार ही समझना चाहिये। लीजिये दोषदर्शी व्यक्तियों की दशा से अपना मिलान कर लीजिये और यदि अपने में दोष पायें तो तुरन्त सुधार कर डालिये, जिससे, अगले दिनों में आप भी उस प्रकार प्रसन्न रह सकें, जिस प्रकार लोग रहते हैं और उन्हें रहना ही चाहिये।

दोष-दर्शन से दूषित व्यक्ति जब किसी व्यक्ति के संपर्क में आता है, तब अपने मनोभाव के अनुसार उसके अन्दर बुराइयाँ ढूँढ़ने लगता है और हठात् कोई न कोई बुराई निकाल ही लेता है। फिर चाहे वह व्यक्ति कितना ही अच्छा क्यों न हो। उदाहरण के लिये किसी विद्वान महात्मा को ही ले लीजिये। लोग उसे बुलाते, आदर सत्कार करते और उसके व्याख्यान से लाभ उठाते हैं। महात्मा जी का व्याख्यान सुन कर सारे लोग पुलकित, प्रसन्न व लाभान्वित होते हैं।

उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते और अपने उतने समय को बड़ा सार्थक मानते। अनेक दिनों, सप्ताहों तथा मासों तक उस सुखद घटना का स्मरण करते और ऐसे संयोग की पुनरावृत्ति चाहने लगते। अधिकाँश लोग उस व्याख्यान का लाभ उठा कर अपना ज्ञान बढ़ाते, कोई गुण ग्रहण करते और किसी दुर्गुण से मुक्ति पाते हैं। वह उनके लिए एक ऐसा सुखद संयोग होता है जो गहराई तक अपनी छाप छोड़ जाता है, ऐसे ही सुव्यक्ति गुणाग्राही कहे जाते हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति, मई 1968, पृष्ठ 22



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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...