मंगलवार, 7 जून 2022

👉 मानव अभ्युदय का सच्चा अर्थ

बुद्ध ने उपनिषद् की शिक्षाओं को जीवन में कार्यान्वित करने की कला का अभ्यास करने के बाद अपना संदेश दिया था। वह संदेश था कि भूमि या आकाश में, दूर या पास में, दृश्य या अदृश्य में, जो कुछ भी है उसमें असीम प्रेम की भावना रखो, हृदय में द्वेष या हिंसा की कल्पना भी जाग्रत न होने दो। जीवन की ही चेष्टा में उठते-बैठो, सोते-जागते, प्रतिक्षण इसी प्रेमभावना में ओतप्रोत रहना ही ब्रह्म-विहार है, दूसरे शब्दों में जीवन की यही गतिविधि है जिससे ब्रह्म का आत्मा में विचार किया जाता है।

यह ब्रह्म की आत्मा क्या है? उपनिषद् के शब्दों में जो आकाश में तेजोमय और अमृतमय है और जो विश्वचेतना है वही ब्रह्म है और उपनिषद् का कहना है कि आकाश में ही नहीं बल्कि जो हमारे अन्तःकरणों में भी तेजोमय और अमृतमय पुरुष है और जो विश्वचेतना का स्रोत है वह ब्रह्म है। इस विराट विश्व के रिक्त स्थान में उस को चेतनता प्राप्त है और हमारी अंतर-आत्मा में भी उसी की चेतनता है।

इस लिये इस व्यापक चेतना की प्राप्ति के लिए हमें अपने अन्तर की चेतना से विश्व की असीम चेतनता का समभाव स्थापित करना है। वस्तुतः मानव के अभ्युदय का सच्चा अर्थ इसी चेतना के उदय और विस्तार में है। वही हमारे-सारे ज्ञान-विज्ञान का ध्येय रहा है।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर
अखण्ड ज्योति 1967 जनवरी पृष्ठ 1

👉 जीवन की सार्थकता और निरर्थकता

शरीर की दृष्टि से मनुष्य की सत्ता नगण्य है। इस तुलना में तो वह पशु-पक्षियों से भी पिछड़ा हुआ है। अन्य जीवों में कितनी ही विशेषतायें ऐसी हैं जिन्हें मनुष्य ललचाई दृष्टि से ही देखता रह सकता है।

मानवीय महत्ता उसकी भावनात्मक उत्कृष्टता में सन्निहित है। जिसकी आस्थाओं का स्तर ऊंचा है, जो दूरदर्शिता और विवेकशीलता के साथ हर समस्या को सोचता और समझता है वही सच्चे अर्थों में मनुष्य है। गुण, कर्म, स्वभाव की महानता ही व्यक्तित्व को ऊंचा उठाती है और उसी के आधार पर किसी को सफल एवं सार्थक जीवन व्यतीत करने का अवसर मिलता है।

जीवन उसी का धन्य है जिसने अपनी आस्थाओं को ऊंचा उठाया और सत्कर्मों में समय लगाया। अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य इसीलिए बड़ा है कि वह अपने आन्तरिक बड़प्पन का परिचय दें। जो इस दृष्टि से पिछड़ा रहा-उसने नर-तन के सौभाग्य को निरर्थक ही गंवा दिया।

 ~ स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति 1967 मार्च पृष्ठ 1

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...