बुधवार, 18 सितंबर 2019

👉 बुरी आदत:-

एक अमीर आदमी अपने बेटे की किसी बुरी आदत से बहुत परेशान था। वह जब भी बेटे से आदत छोड़ने को कहते तो एक ही जवाब मिलता, “अभी मैं इतना छोटा हूँ।। धीरे-धीरे ये आदत छोड़ दूंगा!” पर वह कभी भी आदत छोड़ने का प्रयास नहीं करता।

उन्ही दिनों एक महात्मा गाँव में पधारे हुए थे, जब आदमी को उनकी ख्याति के बारे में पता चला तो वह तुरंत उनके पास पहुँचा और अपनी समस्या बताने लगा।

महात्मा जी ने उसकी बात सुनी और कहा, “ठीक है,  आप अपने बेटे को कल सुबह बागीचे में लेकर आइये, वहीँ मैं आपको उपाय बताऊंगा।”

अगले दिन सुबह पिता-पुत्र बागीचे में पहुंचे।

महात्मा जी बेटे से बोले, “आइये हम दोनों बागीचे की सैर करते हैं।”,  और वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे।

चलते-चलते ही महात्मा जी अचानक रुके और बेटे से कहा, ” क्या तुम इस छोटे से पौधे को उखाड़ सकते हो?”

“जी हाँ, इसमें कौन सी बड़ी बात है।” और ऐसा कहते हुए बेटे ने आसानी से पौधे को उखाड़ दिया।

फिर वे आगे बढ़ गए और थोड़ी देर बाद महात्मा जी ने थोड़े बड़े पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ”क्या तुम इसे भी उखाड़ सकते हो?”

बेटे को तो मानो इन सब में कितना मजा आ रहा हो, वह तुरंत पौधा उखाड़ने में लग गया। इस बार उसे थोड़ी मेहनत लगी पर काफी प्रयत्न के बाद उसने इसे भी उखाड़ दिया।

वे फिर आगे बढ़ गए और कुछ देर बाद पुनः महात्मा जी ने एक गुडहल के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए बेटे से इसे उखाड़ने के लिए कहा।

बेटे ने पेड़ का ताना पकड़ा और उसे जोर-जोर से खींचने लगा। पर पेड़ तो हिलने का भी नाम नहीं ले रहा था। जब बहुत प्रयास करने के बाद भी पेड़ टस से मस नहीं हुआ तो बेटा बोला, “अरे! ये तो बहुत मजबूत है इसे उखाड़ना असंभव है।”

महात्मा जी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, “बेटा, ठीक ऐसा ही बुरी आदतों के साथ होता है,  जब वे नयी होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, पर वे जैसे जैसे  पुरानी होती जाती हैं इन्हें छोड़ना मुशिकल होता जाता है।”

बेटा उनकी बात समझ गया और उसने मन ही मन आज से ही बुरी आदतें छोड़ने का निश्चय किया।

👉 आज का सद्चिन्तन Today Thought 18 Sep 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग Prerak Prasang 18 Sep 2019


👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ६७)

👉 आध्यात्मिक चिकित्सा की प्रथम कक्षा- रेकी

प्राण चिकित्सा की इस रेकी प्रक्रिया में अन्तरिक्ष में संव्याप्त प्राणशक्ति का उपयोग किया जाता है। यह सच तो हम जानते हैं कि प्राण ऊर्जा अन्तरिक्ष में व्याप्त है। पृथ्वी के लिए इसका मुख्य स्रोत सूर्य है। सूर्य से अलग- अलग तरह की तापीय एवं विद्युत चुम्बकीय तरंगे निकलकर धरती पर अलग असर डालती हैं। ठीक इसी तरह प्राण शक्ति भी एक जैव वैद्युतीय तरंग है। जो धरती में सभी जड़ चेतन एवं प्राणी- वनस्पतियों में प्रवाहित होती है। इसी की उपस्थिति के कारण सभी क्रियाशील व गतिशील होते हैं। इसी वजह से धरती में उर्वरता आती है और वनस्पतियाँ तथा जीव- जगत् स्वस्थ व समृद्ध बने रहते हैं। यह सभी कुछ प्राण शक्ति का चमत्कार है। मनुष्य भी अपनी आवश्यकतानुसार इसी प्राण शक्ति को ग्रहण करता है। इसमें अवरोध व रुकावट से ही बीमारियाँ पनपती हैं। रेकी चिकित्सा के द्वारा इस रुकावट को दूर करने के साथ व्यक्ति के अतिरिक्त प्राण शक्ति दी जाती है। इस प्राण शक्ति को ग्रहण कर वह व्यक्ति फिर से अपना खोया हुआ स्वास्थ्य पा सकता है।

प्राण चिकित्सा की इस विधि से न केवल मनुष्य, बल्कि पशुओं का भी उपचार किया जा सकता है। वनस्पतियों की भी प्राण ऊर्जा बढ़ायी जा सकती है। भारतवर्ष में इन दिनों रेकी विधि का प्रचलन बढ़ चुका है। प्रत्येक शहर में कहीं न कहीं रेकी मास्टर मिल जाते हैं। इनसे मिलने वालों के अपने- अपने अलग- अलग अनुभव हैं। इनमें से कई अपने परिजन भी हैं। इनकी अनुभूतियाँ बताती हैं कि गायत्री साधना करने वाला अधिक समर्थ रेकी चिकित्सक हो सकता है। इसका कारण यह है कि रेकी में ली जाने वाली प्राण ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। वही यहाँ गायत्री मंत्र का आराध्य देवता है। गायत्री साधना में साधक की भावनाएँ स्वतः ही सूर्य पर एकाग्र हो जाती हैं और उसे अपने आप ही प्राण ऊर्जा के अनुदान मिलने लगते हैं।

गायत्री साधना के साथ रेकी को जोड़ने पर एक अन्य लाभ भी देखने को मिला है। और वह यह है कि गायत्री साधक के सभी चक्र या शक्तिकेन्द्र स्व गतिशील हो जाते हैं। उसे किसी अतिरिक्त विधि की आवश्यकता नहीं पड़ती। चक्रों के सम्बन्ध में यहाँ एक बात जान लेना चाहिए, क्योंकि अधिकाँश रेकी देने वाले इस बारे में भ्रमित देखे जाते हैं। रेकी विधि में चक्रों को केवल क्रियाशील बनाने की बात है, न कि इनके सम्पूर्ण रूप से जागरण का। क्रियाशील होने का मतलब है कि हमें आवश्यक प्राण ऊर्जा ब्रह्माण्ड से मिलती रहे। इस प्रक्रिया में जो अवरोध आ रहे हैं वे दूर हो जायें। जबकि योग विधि जागरण होने पर योग साधक का सम्बन्ध चक्रों से सम्बन्धित चेतना के अन्य आयामों से हो जाता है और उसमें अनेकों रहस्यमयी शक्तियाँ प्रवाहित होने लगती हैं। प्राण चिकित्सा के रूप में रेकी आध्यात्मिक चिकित्सा की प्राथमिक कला है। इसमें गायत्री साधना के योग से इसकी उच्चस्तरीय कक्षाओं में स्वतः प्रवेश हो जाता है। इस सम्बन्ध में विशिष्ट शक्ति व सामर्थ्य अर्जित करने के लिए नवरात्रि काल को उपयुक्त माना गया है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ९३

👉 आत्म-चिंतन

एक मालन को रोज़ राजा की सेज़ को फूलों से सजाने का काम दिया गया था। वो अपने काम में बहुत निपुण थी। एक दिन सेज़ सजाने के बाद उसके मन में आया की वो रोज़ तो फूलों की सेज़ सजाती है, पर उसने कभी खुद फूलों के सेज़ पर सोकर नहीं देखा था।

कौतुहल-बस वो दो घड़ी फूल सजे उस सेज़ पर सो गयी। उसे दिव्य आनंद मिला। ना जाने कैसे उसे नींद आ गयी।

कुछ घंटों बाद राजा अपने शयन कक्ष में आये। मालन को अपनी सेज़ पर सोता देखकर राजा बहुत गुस्सा हुआ। उसने मालन को पकड़कर सौ कोड़े लगाने की सज़ा दी।

मालन बहुत रोई, विनती की, पर राजा ने एक ना सुनी। जब कोड़े लगाने लगे तो शुरू में मालन खूब चीखी चिल्लाई, पर बाद में जोर-जोर से हंसने लगी।

राजा ने कोड़े रोकने का हुक्म दिया और पूछा - "अरे तू पागल हो गयी है क्या? हंस किस बात पर रही है तू?"

मालन बोली - "राजन! मैं इस आश्चर्य में हंस रही हूँ कि जब दो घड़ी फूलों की सेज़ पर सोने की सज़ा सौ कोड़े हैं, तो पूरी ज़िन्दगी हर रात ऐसे बिस्तर पर सोने की सज़ा क्या होगी?"

राजा को मालन की बात समझ में आ गयी, वो अपने कृत्य पर बेहद शर्मिंदा हुआ और जन कल्याण में अपने जीवन को लगा दिया।

सीख - हमें ये याद रखना चाहिये कि जो कर्म हम इस लोक में करते हैं, उससे परलोक में हमारी सज़ा या पुरस्कार तय होते हैं...

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...