बुधवार, 10 जुलाई 2019

👉 मन को जानें:-

फ्रायड ने अपनी जीवन कथा में एक छोटा-सा उल्लेख किया है। उसने लिखा है कि एक बार वह बगीचे में अपनी पत्नी और छोटे बच्चे के साथ घूमने गया। देर तक वह पत्नी से बातचीत करता रहा, टहलता रहा। फिर जब सांझ होने लगी और बगीचे के द्वार बंद होने का समय करीब हुआ, तो फ्रायड की पत्नी को खयाल आया कि ‘उसका बेटा न-मालूम कहां छूट गया है? इतने बड़े बगीचे में वह पता नहीं कहां होगा? द्वार बंद होने के करीब हैं, उसे कहां खोजूं?’ फ्रायड की पत्नी चिंतित हो गयी, घबड़ा गयी।

फ्रायड ने कहा, ‘‘घबड़ाओ मत! एक प्रश्र मैं पूछता हूँ तुमने उसे कहीं जाने से मना तो नहीं किया? अगर मना किया है तो सौ में निन्यानबे मौके तुम्हारे बेटे के उसी जगह होने के हैं, जहां जाने से तुमने उसे मना किया है।

”उसकी पत्नी ने कहा, ‘‘मना तो किया था कि फव्वारे पर मत पहुंच जाना।’

फ्रायड ने कहा, ” अगर तुम्हारे बेटे में थोड़ी भी बुद्धि है, तो वह फव्वारे पर ही मिलेगा। वह वहीं होगा। क्योंकि कई बेटे ऐसे भी होते हैं, जिनमें बुद्धि नहीं होती। उनका हिसाब रखना फिजूल है। ” फ्रायड की पत्नी बहुत हैरान हो गयी। वे गये दोनों भागे हुए फव्वारे की ओर। उनका बेटा फव्वारे पर पानी में पैर लटकाए बैठा पानी से खिलवाड़ कर रहा था।

फ्रायड की पत्नी ने कहा, ‘‘बड़ा आश्‍चर्य! तुमने कैसा पता लगा लिया कि हमारा बेटा यहां होगा? फ्रायड ने कहा, "आश्चर्य इसमें कुछ भी नहीं है। मन को जहां जाने से रोका जाये, मन वहीं जाने के लिए आकर्षित होता है। जहां के लिए कहा जाये, मत जाना वहां, एक छिपा हुआ रहस्य शुरू हो जाता है कि मन वहीं जाने को तत्‍पर हो जाता है।

” फ्रायड ने कहा, यह तो आश्‍चर्य नहीं है कि मैंने तुम्हारे बेटे का पता लगा लिया, आश्‍चर्य यह है कि मनुष्य-जाति इस छोटे-से सूत्र का पता अब तक नहीं लगा पायी। और इस छोटे-से सूत्र को बिना जाने जीवन का कोई रहस्य कभी उदघाटित नहीं हो पाता। इस छोटे-से सूत्र का पता न होने के कारण मनुष्य-जाति ने अपना सारा धर्म; सारी नीति, सारे समाज की व्यवस्था सप्रेशन पर, दमन पर खड़ी की हुई है।

👉 आज का सद्चिंतन 10 July 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 10 July 2019


👉 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति (भाग 26)

👉 प्रारब्ध का स्वरूप एवं चिकित्सा में स्थान

हमारे कर्म की तीव्रता का आधार होते हैं भाव एवं विचार। क्योंकि इन्हीं से इच्छा एवं संकल्प की सृष्टि होती है। इच्छा और संकल्प के तीव्र व सबल होने पर कर्म भी प्रबल हो जाते हैं। ऐसे प्रबल कर्म अल्प समयावधि में प्रारब्ध में परिवर्तित होकर अपना फल देने की स्थिति में आ जाते हैं। जबकि सामान्य इच्छा के साथ की जाने वाली क्रियाएँ कर्म तो बनती है, परन्तु प्रारब्ध के रूप में इनका रूपान्तरण काफी लम्बे समय बाद होता है। कभी- कभी तो इनके प्रारब्ध बनने में जन्म एवं जीवन भी लग जाते हैं। यहाँ जो बताया जा रहा है वह सुपरीक्षित सत्य है। इसे बार- बार अनुभव किया गया है।

इस सिद्धान्त के अनुसार आध्यात्मिक कर्म, तप आदि साधनात्मक प्रयोग तीव्रतम कर्म माने गए हैं। क्योंकि इनमें भावों एवं विचारों की तीव्रता अधिकतम होती है। इच्छा और संकल्प प्रबलतम होते हैं। ऐसे कर्मों का जब सविधि अनुष्ठान किया जाता है, तो वे तुरन्त ही प्रारब्ध में परिवर्तित होकर अपने फल को प्रकट कर देते हैं। कोई भी अवरोध इसमें आड़े नहीं आता। जिनके कठिन तप प्रयोगों का अभ्यास है, उनके लिए यह नित्य प्रति का अनुभव है। वे अपने दैनिक जीवन में इस सत्य का साक्षात्कार करते रहते हैं।

प्रारब्ध के सिद्धान्त एवं विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण सच और भी है। वह यह कि कर्म बीज से प्रारब्ध बनने की प्रक्रिया यदि अभी पूरी नहीं हो सकी है तो उसे किसी विशेष आध्यात्मिक प्रयोग से कम किया जा सकता है अथवा टाला जा सकता है। परन्तु यदि यह प्रक्रिया पूरी हो गयी है और प्रारब्ध ने अपना पूर्ण आकार ले लिया है तो फिर यह अटल और अनिवार्य हो जाता है। फिर इसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन भले कर दिया जाय, परन्तु इसका टल पाना किसी भी तरह सम्भव नहीं हो पाता।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 39

👉 The Absolute Law Of Karma (Part 33)

MISFORTUNES ARE NOT ALWAYS
RESULTS OF PAST MISDEEDS

Sometimes, the virtuous samskars accumulated on account of our past karmas also produce unhappy events. Virtuous karmas also act as shields to ward off sinful temptations. The former do not permit the sinful tendencies to dominate and offer stiff resistance. Many a times commitment of sin is foiled by some unforeseen obstacle. If a thief breaks his leg while goings for theft, it should be
taken as a consequence of his past virtuous karmas.

Those who work hard for moral or social upliftment of the society and meticulously follow their course of duty, face stupendous problems, hardships and lack of resources. They also have to face antagonism of people who find such activities detrimental to their vested interests. Besides, they are tormented by unscrupulous in many ways. Persons treading the royal highway of righteousness
have to face hardships at each step. Misfortunes are like goldsmith’s furnace, in which the validity of past virtues and tolerance to hardships undertaken for virtuous deeds are tempered. After going through misfortunes, the character and personality of an upright person becomes all the more lustrous.

Hence while going through misfortunes, do not be under the impression that you are a sinner and a wretched person deserving Divine Wrath. It could be that the distress is a blessing in disguise, with hidden boons, which you are unable to foresee at the moment because of lack of clear vision.

Innocent persons may be found suffering because of unfair ideologies or oppression by others. Any one may become a victim of exploitation, suppression and injustice. The exploiter has to face the consequences of his karmas in due course of time, but the sufferer should not take such trials as outcome of his prarabdha.

.... to be continue
✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 The Absolute Law Of Karma Page 54

👉 Moments of self-expression 10 July 2019

■  दुष्कर्म करना हो तो उसे करते हुए कितनी बार विचारों और उसे आज की अपेक्षा कल-परसों पर छोड़ों, किन्तु यदि कुछ शुभ करना हो तो पहले ही भावना तरंग को कार्यान्वित होने दो। कल वाले काम को आज ही निपटाने का प्रयत्न करो। पाप तो रोज ही अपना जाल लेकर हमारी घात में फिरता रहता है, पर पुण्य का तो कभी-कभी उदय होता है, उसे निराश लौटा दिया तो न जाने फिर कब आवे।

◇ दूसरों को सुधारना कठिन हो सकता है, पर अपना मन अपनी बात न माने यह कैसे हो सकता है। हम अपने आपको तो सुधार ही सकते हैं-अपने को सन्मार्ग पर चला ही सकते हैं। इसमें दूसरा कोई क्या बाधा डाले? हम ऊँचे उठना भी चाहते हैं और उसका साधन भी हमारे हाथ में है तो आत्म-सुधार के लिए, आत्म-निर्माण के लिए और आत्म-विकास के लिए क्यों कटिबद्ध न हों?

★ पाप की अवहेलना न करो। वह थोड़ा दिखते हुए भी बड़ा अनिष्ट कर डालता है। जैसे आग की छोटी सी चिनगारी भी मूल्यवान् वस्तुओं के ढेर को जलाकर राख कर देती है। पला हुआ साँप कभी भी डस सकता है। उसी प्रकार मन में छिपा हुआ पाप कभी भी हमारे उज्ज्वल जीवन का नाश कर सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...