शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 22 Sep 2023

आप दूसरों की सेवा करते समय बीज या निराशा, विरक्ति तथा उदासी के भावों को कभी मन में भी न लाया करें। सेवा में ही आनन्दित होकर सेवा किया करें। दूसरों के सेवा करने के लिए सदा प्रस्तुत रहा करें। सेवा करने के अवसर को ढूँढ़ा करें। एक भी अवसर न चूके। सेवा करने का अवसर स्वयं बना दिया करें।

हमारे मन में दो प्रकार के विचार आते हैं- एक उद्वेगयुक्त और दूसरे शान्त। भय, क्रोध, शोक लोभ आदि मनोवेगों से पूरित विचार उद्वेगयुक्त विचार हैं और जिसके विचारों में मानसिक उद्वेगों का अभाव रहता है उन्हें शान्त विचार कहा जाता है। हम साधारणतः विचारों के बल को उससे सम्बन्धित उद्वेगों से ही नापते हैं। जब हम देखते हैं कि कोई व्यक्ति क्रोध में आकर कोई बात कह रहा है तो हम समझते हैं कि वह व्यक्ति अवश्य ही कुछ कर दिखावेगा। पर क्रोधातुर व्यक्ति से उतना अधिक डरने का कारण नहीं जितना कि शान्त मन के व्यक्ति से डरने का कारण है। भावावेश में आने वाले व्यक्तियों के निश्चय सदा डावाँडोल रहते हैं। भावों पर विजय प्राप्त करने वाले व्यक्ति के निश्चय स्थिर रहते हैं। वह जिस काम में लग जाता है उसे पूर्ण करके दिखाता है।

उद्वेगपूर्ण विचार वैयक्तिक होते हैं उनकी मानसिक शक्ति वैयक्तिक होती है शान्त विचार वृहद मन के विचार हैं उनकी शक्ति अपरिमित होती है। मनुष्य जो निश्चय शान्त मन से करता है उसमें परमात्मा का बल रहता है और उसमें अपने आपको फलित होने की शक्ति होती है। अतएव जब कोई व्यक्ति अपने अथवा दूसरे व्यक्ति के लिये कोई निश्चय करता है और अपने निश्चय में अविश्वास नहीं करता तो निश्चय अवश्य फलित होता है। शान्त विचार सृजनात्मक और उद्वेगपूर्ण विचार प्रायः विनाशकारी होते हैं।
                                          
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...