रविवार, 11 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 12 Feb 2024

🔸 कुशलता पूर्वक कार्य करने का नाम ही योग है, कुशल व्यक्ति संसार में सच्ची प्रगति कर सकता है जीवन का सर्वाेच्च लक्ष्य यही है कि मनुष्य प्रत्येक कार्य को विवेक  पूर्वक करे। इससे मन निर्मल रहता है, आत्मा सजग हो जाता है और मस्तिष्क परिष्कृत रहता है। ऐसे विचारशील व्यक्ति को संशय और मोहग्रस्त होकर भटकना नही पड़ता।

🔹  अनासक्ति कर्मयोग का यह अर्थ कदापि नहीं है कि व्यस्थ रहकर कुछ भी अच्छा -बुरा किये जाओ ,कोई भी गुण दोष हमारे लिये नहीं आयेगा। अनासक्ति कर्मयोग का केवल यह अर्थ है कि अपने कर्मों के कर्मफल से प्रभावित होकर कर्म गति में व्यवधान अथवा विराम न आने दें जिससे दिन प्रति दिन अपने कर्मों में सुधार करते हुए परमपद की ओर बढ़ते जायें।

🔸  गृहस्थाश्रम समाज के संगठन मानवीय मूल्यों की स्थापना, समाज निष्ठ, भौतिक विकास के साथ- साथ मनुष्य के आध्यात्मिक- मानसिक विकास का क्षेत्र है। गृहस्थाश्रम ही समाज के व्यवस्थित स्वरूप का मूलाधार है।
 

🔹 
संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जिसकी प्राप्ति मनुष्य के लिए असम्भव हो। प्रयत्न और पुरुषार्थ से सभी कुछ पाया जा सकता है, लेकिन एक ऐसी भी चीज है, जिसे एक बार खोने के बाद कभी नहीें पाया जा सकता और वह है समय।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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