मंगलवार, 8 जनवरी 2019

👉 तीव्र वैराग्य


"तीव्र वैराग्य किसे कहते हैं, इसकी एक कहानी सुनो। किसी देश में एक बार वर्षा कम हुई। किसान नालियाँ काट-काटकर दूर से पानी लाते थे। एक किसान बडा़ हठी था। उसने एक दिन शपथ ली कि जब पानी न आने लगे, नहर से नाली का योग न हो जाए, तब तक बराबर नाली खोदूँगा। इधर नहाने का समय हुआ। उसकी स्त्री ने लड़की को उसे बुलाने भेजा।

लड़की बोली, 'पिताजी, दोपहर हो गयी, चलो तुमको माँ बुलाती है। 'उसने कहा, तू चल, हमें अभी काम है।' दोपहर ढल गयी, पर वह काम पर हटा रहा। नहाने का नाम न लिया। तब उसकी स्त्री खेत में जाकर बोली, 'नहाओगे कि नहीं? रोटियाँ ठण्डी हो रही हैं। तुम तो हर काम में हठ करते हो। काम कल करना या भोजन के बाद करना।' गालियाँ देता हुआ कुदाल उठाकर किसना स्त्री को मारने दौडा़ बोला, 'तेरी बुद्धि मारी गयी है क्या? देखती नहीं कि पानी नहीं बरसता; खेती का काम सब पडा़ है; अब की बार लड़के-बच्चे क्या खाएँगे? सब को भूखों मरना होगा। हमने यही ठान लिया है कि खेत में पहले पानी लायेंगे, नहाने-खाने की बात पीछे होगी।'

मामला टेढा़ देखकर उसकी स्त्री वहाँ से लौट पडी़। किसान ने दिनभर जी तोड़ मेहनत करके शाम के समय नहर के साथ नाली का योग कर दिया। फिर एक किनारे बैठकर देखने लगा, किस तरह नहर पानी खेत में 'कलकल' स्वर से बहता हुआ आ रहा है, तब उसका मन शान्ति और आनन्द से भर गया। घर पहुँचकर उसने स्त्री को बुलाकर कहा, 'ले आ अब डोल और रस्सी।' स्नान भोजन करके निश्चिन्त करके निश्चिन्त होकर फिर वह सुख से खुर्राटे लेने लगा। जिद यह है और यही तीव्र वैराग्य की उपमा है।
     
"खेत में पानी लाने के लिए एक और किसान गया था। उसकी स्त्री जब गयी और बोली, 'धूप बहुत हो गयी, चलो अब, इतना काम नहीं करते', तब वह चुपचाप कुदाल एक ओर रखकर बोला, 'अच्छा, तू कहती है तो चलो।' (सब हँसते हैं।) वह किसान खेत में पानी न ला सका। यह मन्द वैराग्य की उपमा है।
       
" हठ बिना जैसे किसान खेत में पानी नहीं ला सकता, वैसे ही मनुष्य ईश्वरदर्शन नहीं कर सकता।" 


~ रामकृष्ण वचनामृत से

👉 आज का सद्चिंतन 8 Jan 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 8 Jan 2019


👉 आज का दिन, सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त (भाग 1)

अवसर की तलाश में मत रहो। बुद्धिमानों के लिए हर समय अवसर है। न वे मुहूर्त निकालते हैं, न साथ ढूँढ़ते हैं और न सहारा तकते हैं। सृष्टा ने समय को ऐसी धातु से गढ़ा है कि उसका प्रत्येक क्षण शुभ है। अशुभ तो मनुष्य का संशय है, जो पल में आशा बाँधता और पल में निराश होता है।

बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं। पतन और प्रलोभनों की सर्वत्र भरमार है। धरती पर गुरुत्वाकर्षण हर किसी को- हर घड़ी गिरने के लिए बुलाता और घसीटता है। अच्छाई का अवसर तो मनुष्य को स्वयं विनिर्मित करना पड़ता है। वह बिना बुलाये किसी के पास नहीं आता है। आदर्शों के प्रति निष्ठा और अपने भरोसे पर हिम्मत जिस घड़ी उठ पड़े, समझना चाहिए कि ऊँचे उठने आगे बढ़ने की शुभ घड़ी आ पहुँची।

राह मिले तो ठीक, नहीं तो उसे बुलाना चाहिए। अवसर आये तो ठीक, नहीं तो उसे आग्रहपूर्वक बुलाना चाहिए। जो अवसर का उपयोग जानते हैं वे उसे पैदा भी कर सकते हैं। आज का दिन हर भले काम के लिए उपयुक्त है। जो शुभ है उसे शीघ्र ही किया जाना चाहिए। देर तो उनमें करनी चाहिए जो अशुभ है। जिसे करते हुए अन्तःकरण में भय संकोच का संसार होता है।

मनस्वी लोगों ने कभी अवसर की शिकायत नहीं की, हमें अवसर मिलता तो यह कर दिखाने की डींग हाँकने वाले थोथे चने की तरह हैं जो सिर्फ बज सकते हैं, उग नहीं सकते। अवसर आगे बढ़कर हाथ में लिया जाता है और अपनी प्राणाणिकता के आधार पर उसे सार्थक कर दिखाया जाता है। काम चाहे छोटा ही क्यों न हो, यदि सही तरीके से कर दिखाया जायगा तो उससे अच्छा परिणाण अनायास ही दौड़ता आयेगा और कहेगा कि हमें भी कर दिखाया जाय। यही उन्नति की सीढ़ी है। एक-एक कदम आगे बढ़ने और ऊँचे उठने का तरीका यही रहा है कि एक काम सही तरीके से किया नहीं गया कि उससे अच्छा, तत्काल आगे आ उपस्थित हुआ।

.....क्रमशः जारी
✍🏻पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1983 पृष्ठ 26
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1983/June/v1.2

👉 आत्मचिंतन के क्षण 8 Jan 2019

◾ "है नाथ! तुम्ही हमारे सर्वस्व हो, तुम्ही हमारे प्राणों के आधार हो और सब वस्तुओं में सार पदार्थ भी तुम्ही हो। तुम्हे छोड़ तीनों लोक में अपना और कोई नहीं। सुख, शान्ति, सहाय, सम्बल, सम्पद, ऐश्वर्य, ज्ञान, बुद्धि, बल, वासगृह, आरामस्थल, आत्मीय, मित्र, परिवार सब कुछ तुम्हीं हो। तुम्हीं हमारे इहकाल हो और तुम्हीं परकाल हो, तुम्हीं परित्राण हो और तुम्हीं स्वर्गधाम हो, शास्त्रविधि और कल्पतरू गुरु भी तुम्हीं हो; तुम्हीं हमारे अनन्त सुख के आधार हो। हमारे उपाय, हमारे उद्देश्य तुम्ही हो, तुम्हीं स्त्राष्टा, पालनकर्ता और उपास्य हो, दण्डदाता पिता, स्नेहमयी माता और भवार्णव के कर्णधार भी तुम्हीं हो।"

◾ "एक उपाय से जातिभेद उठ सकता है। वह उपाय है -भक्ति। भक्तों के जाति नहीं है। भक्ति होने से ही देह, मन, आत्मा सब शुद्ध हो जाते हैं। गौर, निताई हरिनाम देने लगे और चाण्डाल तक सभी को गोद में लेने लगे। भक्ति न रहने पर ब्राह्मण नहीं है। भक्ति रहने पर चाण्डाल चाण्डाल नहीं है। अस्पृश्य जाति भक्ति के होने पर शुद्ध पवित्र हो जाती है।"

◾ ऊँट कटीली घास  को बहुत चाव से खाता है। परन्तु जितना ही खाता है उतना ही मुँह से धर धर खून गिरता है, फिर भी कटीली घास को खाना नहीं छोड़ता! संसारी मनुष्यों को इतना शोकताप मिलता है, किन्तु कुछ दिन बीते कि सब भूल गए।

~ रामकृष्ण परमहंस

👉 A Perfect Deal

Man is a mortal being and all his belongings are also perishable. Only one of his ‘possessions’ that lasts for Ages after he is gone is his glory. One who earns this preeminence is indeed most successful in the ‘business’ of life even if he has sacrificed or lost on the materialistic front. His trade is like, for example, that of getting a new stout building in return of selling off an unused heap of hay. Great ones are those who refine and excel their lives up to glorious heights, worth the dignity of human life. Dormant lives of others mushroom and end like that of any other creature who survives just to till the tummy and quench the sensual thirst.

Those stuck in the peripheries of selfish possession and attachments are shortsighted, and remain careless of the future. Their lives, their activities, despite the physical dynamism and alacrity are no better than ‘movable corpse.’ A dormant life is no life… Fools gather more and more of wealth and resources so that their beloved ones would enjoy it all generations after generations… They spent all their time, talents and efforts in insane and at times unfair possession and its safety. Wouldn’t it be wiser of them if they had employed their resources prudently in the activities of progress and welfare? This would have brightened their own future as well along with supporting more and more people around and contributing in constructive reformation and development.

Draining or throwing away the useful things and collecting the rubbish or hazardous ones – is a clear sign of insanity. Aren’t they mindless who invite enmity all the time, by using absurd, abusive, acrimonious tongue? Anybody, howsoever learned, skillful and smart he might be, is unwise if, instead of augmenting the virtuous qualities, he opts for vices and weaknesses.

📖 Akhand Jyoti, Nov. 1942

👉 सच्चा और अच्छा व्यापार

आदमी मर जाता है, उसके साज-समान, महल, तिबारे टूट-फूट जाते हैं, परंतु करतूूत ऐसी वस्तु है जो युगों तक जीवित रहती है। जिसने सर्वस्व देकर यश कमाया, उसने बहुत अच्छा व्यापार किया। बरसाती फूस को बेच कर एक पक्का कोठा खरीद लेना बुद्धिमानी है। वे मकान आत्मा हैं, जो अपना जीवन उज्ज्वल कीर्त्ति कमाने में लगाते हैं। उन अभागों के पैदा होने से क्या लाभ, जो जीवन भर पेट भरते रहे और अंत में कुत्तों की मौत मर गए।

जिन्हें अपने भविष्य की चिंता नहीं और स्वार्थ की परिधि से आगे कुछ नहीं देख सकते, वे मुर्दे हैं, भले ही वे साँस लेते, खाते-पीते और चलते-फिरते दिखाई देते हों। मूर्ख लोग धन जमा करके रख जाते हैं ताकि पीछे वाले चंद लोग खाएँ और खुश रहें। कितना अच्छा हो यदि वे अपनी सामने ही सत्कर्मों में उसे लगाते ताकि वह श्रेष्ठ भूमि में उगता और अपनी छाया में असंख्य प्राणियों को शांति देता।

बेवकूफ उसे कहते हैं जो फायदे की चीज को फेंक देता है और हानि करने वाली वस्तुओं को अपनाता है। जो कड़वी और अनर्गल बाते अपनी जिह्वा से बकते हैं, उन्हें बेवकूफ के अलावा और क्या कहा जाए? कोई आदमी कितना ही पढ़ा-लिखा और चतुर क्यों न हो, पर यदि वह भलाई को छोड़कर बुराई अपनाता है, तो उसे पहले सिरे का मूर्ख समझना चाहिए।

📖 अखण्ड ज्योति -नवम्बर 1942

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...