शनिवार, 24 नवंबर 2018

👉 गुरु तेग बहादुर जी ”हिन्द की चादर “बलिदान दिवस 24 नवंबर

संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अपनी आस्था के लिए बलिदान देने वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम पातशाह की शहादत। औरंगजेब को दिल्ली के तख्त पर कब्जा किए 24-25 वर्ष बीतने को थे। इनमें से पहले 10 वर्ष उसने पिता शाहजहां को कैद में रखने और भाइयों से निपटने में गुजारे थे।

औरंगजेब के अत्याचार अपने शिखर पर थे। बात 1675 ई. की है। कश्मीरी पंडितों का एक दल पंडित किरपा राम के नेतृत्व में गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में कीरतपुर साहिब आया और फरियाद की- हे सच्चे पातशाह, कश्मीर का सूबेदार बादशाह औरंगजेब को खुश करने के लिए हम लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहा है, आप हमारी रक्षा करें। यह फरियाद सुनकर गुरु जी चिंतित हो उठे। इतने में, मात्र नौ वर्षीय श्री गुरु गोविंद सिंह बाहर से आ गए। अपने पिता को चिंताग्रस्त देखकर उन्होंने कारण पूछा। गुरु पिता ने कश्मीरी पंडितों की व्यथा कह सुनाई। साथ ही यह भी कहा कि इनकी रक्षा सिर्फ तभी हो सकती है, जब कोई महापुरुष अपना बलिदान करे। बालक गोविंद राय जी ने स्वाभाविक रूप से उत्तर दिया कि इस महान बलिदान के लिए आपसे बडा महापुरुष कौन हो सकता है?

नवम पातशाह ने पंडितों को आश्वासन देकर वापस भेजा कि अगर कोई तुम्हारा धर्म परिवर्तन कराने आए, तो कहना कि पहले गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन करवाओ, फिर हम भी धर्म बदल लेंगे। नवम पातशाह औरंगजेब से टक्कर लेने को तैयार हो गए। बालक गोविंद राय को गुरुगद्दी सौंपी और औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो गए। औरंगजेब ने गुरु जी को गिरफ्तार किया और काल-कोठरी में बंद कर दिया। गुरु जी के सामने तीन शर्ते रखी गई- या तो वे धर्म परिवर्तन करें या कोई करामात करके दिखाएं या फिर शहादत को तैयार रहें। गुरु जी ने पहली दोनों शर्ते मानने से इंकार कर दिया।

परिणामस्वरूप गुरु जी के साथ आए तीन सिखों-भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला को यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु जी इन सबके लिए पहले से ही तैयार थे। उन्होंने कहा-मैं धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूं और करामात दिखाना ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। गुरु जी को आठ दिन चांदनी चौक की कोतवाली में रखा गया। उन पर अत्याचार किया गया, परंतु वे अचल रहे और अंतत: नानकशाही तिथि पत्रानुसार 24 नवंबर 1675 के दिन उन्हें चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। गुरु जी के एक सिख भाई जैता जी ने गुरु जी के शीश को आनंदपुर साहिब लाने की दिलेरी दिखाई। गुरु गोविंद सिंह जी ने भाई जैता के साहस से प्रसन्न होकर उन्हें रंगरेटे-गुरु के बेटे का खिताब दिया।

गुरु जी के शीश का दाह-संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया। गुरु जी के शरीर को भाई लखी शाह और उनके पुत्र अपने गांव रकाबगंज ले गए और घर में आग लगाकर गुरु जी का दाह-संस्कार किया। आज यहां गुरुद्वारा रकाबगंज, दिल्ली सुशोभित है। दिल्ली में आज भी गुरुद्वारा शीशगंज नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी की बेमिसाल शहादत की याद दिलाता है। आज भी लोग उन्हें हिंद की चादर कह कर याद करते हैं।

👉 मौत का सौदागर

1888 की बात है, एक व्यक्ति सुबह-सुबह उठ कर अखबार पढ़ रहा था, तभी अचानक उसकी नज़र एक “शोक – सन्देश ” पर पड़ी। वह उसे देख दंग रह गया , क्योंकि वहां मरने वाले की जगह उसी का नाम लिखा हुआ था। खुद का नाम पढ़कर वह आश्चर्यचकित तथा भयभीत हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अखबार ने उसके भाई लुडविग की मरने की खबर देने की जगह खुस उसके मरने की खबर प्रकाशित कर दी थी। खैर, उसने किसी तरह खुद को समभाला, और सोचा, चलो देखते हैं की लोगों ने उसकी मौत पर क्या प्रतिक्रियाएं दी हैं।

उसने पढ़ना शुरू किया, वहां फ्रेंच में लिखा था, “”Le marchand de la mort est mort” यानि, “मौत का सौदागर” मर चुका है”

यह उसके लिए और बड़ा आघात था, उसने मन ही मन सोचा , ” क्या उसके मरने के बाद लोग उसे इसी तरह याद करेंगे?”

यह दिन उसकी ज़िन्दगी का टर्निंग पॉइंट बन गया, और उसी दिन से डायनामाइट का यह अविष्कारक विश्व शांति और समाज कल्याण के लिए काम करने लगा। और मरने से पहले उसने अपनी अकूत संपत्ति उन लोगों को पुरस्कार देने के लिए दान दे दी जो विज्ञान और समाज कलायन के क्षत्र में उत्कृष्ट काम करते हैं।

मित्रों, उस महान व्यक्ति का नाम था, ऐल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल, और आज उन्ही के नाम पर हर वर्ष “नोबेल प्राइज ” दिए जाते हैं। आज कोई उन्हें “मौत के सौदागर के रूप” में नहीं याद करता बल्कि हम उन्हें एक महान वैज्ञानिक और समाज सेवी के रूप में याद किया जाता है।

जीवन एक क्षण भी हमारे मूल्यों और जीवन की दिशा को बदल सकता है, ये हमें सोचना है की हम यहाँ क्या करना चाहते हैं? हम किस तरह याद किये जाना चाहते हैं? और हम आज क्या करते हैं यही निश्चित करेगा की कल हमें लोग कैसे याद करेंगे! इसलिए, हम जो भी करें सोच-समझ कर करें, कहीं अनजाने में हम “मौत के सौदागर” जैसी यादें ना छोड़ जाएं!!!

👉 जाने घूमना क्यों जरुुरी

जब आप घूमना शुरू करते हैं तो आपके शरीर में हर पल क्या होता है। यहां प्रति मिनट के लिहाज से होने वाली शारीरिक प्रतिक्रियाएं उनका आपस में क्या संबंध है, नियमित भ्रमण और व्यायाम से आपके शरीर पर पड़ने वाले चमत्कारिक और लाभकारी परिवर्तनों का क्रम इस प्रकार है-

शुरुआती एक मिनट से 5 मिनट में जब आप घूमना शुरू करते हैं और चहलकदमी के साथ कदम रखते हैं तो शरीर मेें ऊर्जा के उत्पादन के साथ कुछ रसायनों का शरीर की कोशिकाओं में संचार होता है, जो आपकी शारीरिक कोशिकाओं के लिए ईंधन का कार्य करती है, घूमते समय।

आपके हृदय की धडक़न की दर 70 से 100 तक प्रति मिनट पहुंच जाती है, (बीपीएम) रक्त संचार में तेजी होती है, जिससे मांसपेशियों में गर्मी आती है। शरीर के जोड़ों की अकड़न को दूर करने के लिए वसीय तत्व (ल्युब्रिकेंट फ्लूड) का संचार होता है। जिससे आपके चलने की राह सुगम हो जाती है।

जब आप चलना शुरू करते हैं तो उपका शरीर प्रति मिनट 5 कैलोरी ऊर्जा का क्षय करना शुरू कर देता है हर एक मिनट के अंतराल के दौरान। इस सतत ऊर्जा क्षय के दौरान आपका शरीर ईंधन के रूप में शरीर में संचित कार्बोहाइड्रेट और वसा को खींचने लगता है।

मिनट 6 से 10 में  हृदय की धडक़न बढ़ जाती है और ऊर्जा के क्षय होने की दर बढ़ कर प्रति मिनट 6 कैलोरी हो जाती है, जिससे आपको आराम का अहसास होता है। रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में भी मामूली वृद्धि हो जाती है नियमित रसायनों के संचार से जिससे रक्त वाहिकाओं में अधिक रक्त का प्रवाह हो जाता है जिससे बढ़े हुए रक्त के अनुपात में ऑक्सीजन की जरुरत बढ़ने से शरीर की मांस पेशियां काम करने लगती है।

11 से 20 मिनट की अवधि में शरीर के तापमान में वृद्धि होना शुरू हो जाता है जिससे रक्त की धमनियों में प्रसरण शुरू होता इसकी शुरूआत त्वचा से होती है, जो धीरे-धीरे बढक़र हृदय को आराम पहुंचाता है। इस अवधि में आपका ऊर्जा क्षय प्रति मिनट 7 कैलोरी हो जाता है साथ श्वांस लेने में जोर आने लगता है। इससे हार्मोन्स जैसे एपिनिजिन और ग्लूकोगोन की मात्र बढ़ जाती है, जिससे शरीर की मांसपेशियों को आसानी से ईंधन (ऊर्जा) मिलने लगती है।

21 से 45 मिनट की अवधि में घूमने वाले शरीर में ताजगी के साथ ही स्व उत्प्रेरण की क्षमता आ जाती है, जिससे आप अपने शरीर को आराम देने का क्रम शुरू कर देते हैं, उससे आपके तनाव को स्तर घटने लगता है। साथ ही अच्छे व लाभकारी रसायनों का संचार होने लगता है जैसे आपके मस्तिष्क से एंडोरफिन्स का संचरण। जिससे अधिक संचित वसा का क्षय शुरू होता है।

इससे इंसुलिन हार्मोन का स्तर भी संतुलित होने लगता है। जिससे जो लोग मोटापा और मधुमेह से ग्रसित हैं उन्हें इन दोनों रोग से लड़ने की ताकत मिलती है। 45 से 60 मिनट की अवधि में शरीर की मांसपेशियां में थकान का स्तर बढ़ जाता है, जिससे आपके शरीर में जमा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटने लगती है। जिससे आपको शीतलता का अनुभव होता है।

आपके हृदय के धडक़न की दर घट जाती है, श्वांस लेने की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है। इस अवधि में आपके शरीर से ऊर्जा के क्षरण का स्तर थोड़ा कम होता है, पर जब आपने घूमना शुरू किया उससे अधिक ऊर्जा का क्षरण इस अवधि में होता है। एक घण्टे घूमने से ऊर्जा के क्षय होने की गति में वृद्धि होती है। ऐसे में कहा जा सकता है। एकमात्र घूमने से तमाम खुशियां मिल सकती है शरीर के लिए घुमना मानव शरीर के लिए वरदान है।

👉 Praise be only unto those making meritorious use of money

These days money is commonly reckoned to be the loftiest blessing, gift or glory among all. However, it doesn’t deserve the honour of being the jewel in the crown of divine gifts which should actually belong to pre-eminent feelings like empathy, kindness, generosity, etc. Anyone endowed with such pre-eminent feelings becomes a divine being in person. Great people, sages, those having a simple-living-high-thinking way of austere life, and people who renounced their happiness or sacrificed their everything for others belong to this class of sublime people, i.e. the divine beings. They burn like a candle to impart the light of bliss everywhere. Whatever goodness, blessedness or bliss we experience everywhere are in reality the manifestations of pre-eminent feelings.

The second place among divine gifts goes to vidyā or wisdom. (This is a manifestation of brāhmaṇatva, i.e. a mental faculty of sublime thinking.) The third gift is that of the talents. (This can be classed as kshatriyatwa i.e. the physical expression of brave deeds.) Money comes next at the fourth place. Money basking the undeserving top praise has become a great misfortune for the human race. One of its offshoot is that people have become more inclined to amass as much money as possible so as to become more praiseworthy or respectable in society. On the contrary, such money should have been well utilised all the time to facilitate noble causes.

Money is indeed a divine gift. Wealth is a sign of a glimpse of divine grace. This is one of the reasons why we offer prayers to Mother Lakshmi—the Goddess of wealth and properity during Deepawali, the festival of light. However, any money that is wrongly used to provide luxuries to or to satisfy ego of just a few rather than aptly being used for the good of the masses isn’t at all worth of accolade. Such riches have been and should be disapproved of.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Yug Nirman Yojana: Darsana, swarupa va karyakrama 66:1.38

👉 सम्मान सिर्फ धन के सदुपयोगियों का

विभूतियों में इन दिनों अग्रिम स्थान धन को मिल गया है, पर वस्तुत: वह उसका स्थान नहीं है। प्रथम स्थान उदात्त भावनाओं का है। वे जिनके पास हैं, वे देव हैं। महामानवों को, ऋषि व तपस्वियों को, त्यागी-बलिदानियों को देव संज्ञा में गिना जाता है, वे दीपक की तरह जलकर सर्वत्र प्रकाश फैलाते हैं। इस संसार में जितना चेतनात्मक वर्चस्व है, उसे उदात्त भावनाओं का वैभव ही कहना चाहिए।

दूसरा स्थान है विद्या का, इसे ब्राह्मणत्व कह सकते हैं। तीसरी विभूति है प्रतिभा, इसे क्षत्रियत्व कहा जा सकता है। इसके बाद चौथी गणना धन की है। मानव जाति का दुर्भाग्य ही है कि आज धन को सर्वप्रथम स्थान और सम्मान मिल गया। इसी का दुष्परिणाम यह हुआ कि व्यक्ति अधिकाधिक धन संग्रह करके बड़े से बड़ा सम्मानीय बनना चाहता है, जबकि धन का उपयोग उसे बिना रोके निरन्तर सत्प्रयोजनों में प्रयुक्त करते रहना ही हो सकता है।

धन एक विभूति है। उसके पीछे दैवी अनुकम्पा की झाँकी है, इसलिए अपने यहाँ दीपावली पर्व पर लक्ष्मी की पूजा होती है। पर वह धन सम्मानित नहीं हो सकता जो लोकहित से अवरुद्ध होकर चन्द व्यक्तियों की विलासिता और अहंता की पूर्ति में लगा हुआ है। ऐसे धन की निन्दा की गई है।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (१.३८)

👉 आज का सद्चिंतन 24 Nov 2018

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 24 November 2018

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...