शनिवार, 6 मई 2023

👉 तितिक्षा ही हमें सुदृढ़ बनाती है। (अन्तिम भाग)

🔷 कैक्टस जानते हैं कि अपनी सुरक्षा का प्रबन्ध ताप किये बिना गुजारा नहीं। इस दुनिया में उनकी कमी नहीं जो दूसरों का उन्मूलन करके ही अपना काम चलाते हैं। इनके सामने नम्र सरल बनकर रहा जाय तो वे उस सज्जनता को मूर्खता ही कहेंगे और अनुचित लाभ उठायेंगे। भोले कहे जाने वालों का शोषण इसी प्रकार होता रहा है। वे इस तथ्य से अवगत प्रतीत होते हैं। तभी तो अपनी सुरक्षा के लिए-आक्रमणकारियों के दाँत खट्टे करने के लिए उनने उचित व्यवस्था की हुई है। दूसरों पर आक्रमण भले ही न किया जाय पर अपनी सुरक्षा का इन्तजाम रखने और आक्रमणकारियों को बैरंग वापिस लौटाने की व्यवस्था तो करनी ही चाहिए। कैक्टस यह प्रबन्ध कर सकने के कारण ही इस दुरंगी दुनिया के बीच जीवित है।

🔶 कैक्टस के तनों पर नुकीले काँटे होते हैं। वनस्पति चर जाने के लालची पशु उनकी हरियाली देखकर दौड़े आते हैं पर जब काँटों की किलेबन्दी देखते हैं तो चुपचाप वापिस लौट जाते हैं।

🔷 इन पौधों की रंग-बिरंगी विभिन्न आकृति-प्रकृति की अनेक जातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से फिना मैरी गोल्ड, मिल्क वीड, ओपाईन, पर्सलेन, र्स्पज, जिकेनियम, डंजी मुख्य हैं। इनमें से कितने ही ऐसे होते हैं जिनकी आकृति सुन्दर प्रस्तर खण्डों जैसी लगती है।

🔶 यह पौधे अब सब जगह शोभा सज्जा के काम आते हैं। राजकीय उद्यानों में, श्रीमन्तों के राजमहलों में, कला प्रेमियों में इनका बहुत मान है। इन्हें लगाये बिना कोई साधारण वनस्पति उद्यान अधूरा ही माना जाता है। सर्वसाधारण में भी इनकी लोकप्रियता बढ़ी है और हर जगह उन्हें मँगाया सजाया जा रहा है।

🔷 सम्भवतः यह इनका दृढ़ता, कठोरता, स्वावलम्बिता और तितीक्षा जैसी विशेषताओं का ही सम्मान है।

🔶 मनुष्य जितना नाजुक बनता जायगा उतना ही दुर्बल बनेगा और परिस्थितियाँ उस पर हावी होंगी। किन्तु यदि दृढ़ता, तितीक्षा, कष्ट सहिष्णुता और साहसिकता अपनाये रहे तो न केवल शरीर वरन् मन भी इतना सुदृढ़ होगा जिसके सहारे हर विपन्नता का सामना किया जा सके।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 56

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1972/March/v1.56

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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 6 May 2023

प्यार आध्यात्मिक गुण है। उसकी सार्थकता तभी है, जब उसके साथ उत्कृष्टतावादी आदर्शों में समन्वय रह सके। ऐसा प्यार ही प्रयोक्ता और उपभोक्ता के लिए समान रूप से श्रेयस्कर होता है। सच्चे प्यार में एक आँख दुलार की और एक आँख सुधार की रहती है। इसके बिना अनीति पोषक मैत्री तो अमैत्री से भी अधिक अहितकर सिद्ध होती है।

अहिंसा एक आदर्श एवं दृष्टिकोण है, जिसमें दूसरों के सम्मान तथा अधिकार को अक्षुण्ण रहने देने की दृढ़ता, आत्मीयता, सहनशीलता, करुणा एवं उदारता का समावेश है। अपने कष्ट की ही तरह यदि दूसरों के कष्ट को भी माना जाय, अपनी क्षति की तरह ही यदि दूसरों की क्षति भी आँकी जाय तो सहज ही उस तरह की नीति अपनानी पड़ेगी जैसी कि हम दूसरों द्वारा अपने प्रति अपनाये जाने की अपेक्षा करते हैं।

पैसे से भी अधिक महत्त्वपूर्ण संपत्ति है-समय। खोया हुआ पैसा फिर पाया जा सकता है, पर खोया हुआ समय फिर कभी लौटकर नहीं आता। जो क्षण एक बार गये वे सदा के लिए गए। धन मनुष्कृत और समय ईश्वर प्रदत्त सम्पत्ति है। समय को यदि बर्बाद न किया जाय, उसे योजनाबद्ध दिनचर्या के साथ पूरी तत्परता और सजगता के साथ खर्च किया जाय तो सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा कई गुना अधिक और कई गुना ऊँचे स्तर का काम किया जा सकता है।

मनुष्य कुसंस्कारों का गुलाम हो जाय, अपने स्वभाव में परिवर्तन न कर सके, यह बात ठीक नहीं जचती। यह मनुष्य के संकल्प बल और विचारों के दृष्टिकोण को समझकर कार्य करने पर निर्भर है। महर्षि वाल्मीकि, संत तुलसीदास, भिक्षु अंगुलिमाल, गणिका एवं अजामिल के प्रारंभिक जीवन को देखकर और आखिरी जीवन से तुलना करने पर यह स्पष्ट ही प्रतीत हो जाता है कि दुर्गुणी और पतित लोगों ने जब अपना दृष्टिकोण समझा और बदला तो वे क्या से क्या हो गये? चाहिए संकल्प बल की प्रबलता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...