सोमवार, 7 जनवरी 2019

👉 आत्मबोध का अभाव ही खिन्नता (अन्तिम भाग)

सम्बन्धी कुछ समय पूर्व ही तो मिले थे। इससे पूर्व वे भी किसी के कुटुम्बी सम्बन्धी थे। अब यदि उनमें से कोई बिछुड़ता है और किसी नये परिवार का सदस्य बनता है तो ऐसा क्या हुआ जो इससे पूर्व किसी के साथ घटित नहीं हुआ, या भविष्य में किसी के साथ घटित न होगा। मिलन की प्रसन्नता के साथ विछोह की खिन्नता का अटल नियम चला आ रहा है। उस भवितव्यता से हम बचे रहें, ऐसी आशा करना व्यर्थ है। जो व्यर्थ की चिन्तन करता है उसे अकारण खिन्नता ओढ़नी पड़ती है।

परिवर्तन इस संसार का नियम है। जो वस्तु कल एक की थी वह आज अपने हाथ आ गई। परसों उसे दूसरे के हाथ जाना है। यह भ्रमणशील विश्व व्यवस्था अपने नियम बदल दे और तुम्हारे लिए नियम बदल दे और तुम्हारे लिए स्थिर बन कर रहे। ऐसी आशा करना खिन्नता मोल लेना है जिसका कोई उपचार नहीं।

यदि परिवर्तन से− विछोह और वियोग के दुःख से बचना है तो उसका एक ही उपाय है− आत्मज्ञान। हम सदा से हैं सदा तक रहेंगे। वस्तुएँ न अपनी थीं न अपनी रहेंगी। प्राणियों से सम्बन्ध बनते और बिछुड़ते रहते हैं। यह आत्मज्ञान है। आत्मा के अनुरूप चिन्तन, चरित्र और व्यवहार का गठन−यही है। स्थायी प्रसन्नता का वह आधार जिससे परिवर्तनशील परिस्थितियाँ न खिन्नता उत्पन्न करती हैं और न किसी कारण प्रसन्नता में व्यवधान आता है। आत्मबोध के अभाव में ही हम रोते−कलपते हैं। इसे प्राप्त किया जा सके तो फिर सदा सर्वदा आनन्द ही आनन्द है।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1985 पृष्ठ 26

http://literature.awgp.org/hindi/akhandjyoti/1985/March/v1.26

👉 On the way to Enlightenment

Do not argue with others if you find their thoughts conflicting with or going against yours. There are countless number of people living on our planet having diverse views, ideas, beliefs, ways of thinking and outlooks. There is every possibility that any of these viewpoints could be right. Therefore, you should learn not to disregard others’ opinion, be a sympathetic listener and respect their views. Get rid of any egocentric self-opinionated attitude you might have and expand the horizons of your vision. Be open-minded and, be willing to listen to and consider others’ views. Then only your life would become extremely fruitful and really helpful to others.

Talk gently, humbly, amicably, pleasingly and moderately. Give up any unworthy ideas and strong feelings. Get rid of any traces of arrogance or grumpiness. Try not to attach any importance to yourself. The task of serving humanity expects an individual to become totally devoted to the cause, with other people being at the forefront of his/her consideration.

If you do possess all the the aforesaid characteristics, you are indeed a leading light and a boon to the world. You are like a celestial fragrant flower whose fragrance will disperse far and wide (i.e. inspire others). If you do succeed in accomplishing this much, you can safely assume that you are on your way to reach the acme of enlightenment.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Aacharya
📖 Aatmagyaan aur Atmakalyaan  (Self-realization and Self-benefit) Page 5


👉 उच्चतम अवस्था की प्राप्ति

यदि दूसरों के विचार आपके विचारों से मुक्त हों तो उनसे लड़ाई-झगड़ा न करो। अनेक प्रकार के मन होते हैं। विचारने की शैली अनेक प्रकार की हुआ करती है। विचारने के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हुआ करते हैं। अतएव सभी दृष्टिकोण निर्दोष हो सकते हैं। लोगों के मत के अनुकूल बनो। उनके मत को भी ध्यान तथा सहानुभूतिपूर्वक देखो और उनका आदर करो। अपने अहंकार चक्र के क्षुद्र केंद्र से बाहर निकलो और अपनी दृष्टि को विस्तृत करो। अपना मन सर्वग्राही और उदार बनाकर सबके मत के लिए स्थान रखो, तभी आपका जीवन विस्तृत और हृदय उदार होगा।

आपको धीरे-धीरे, मधुर और नम्र होकर बातचीत करनी चाहिए। मितभाषी बनो। अवांछनीय विचारों और संवेदनाओं को निकाल दो। अभिमान या चिड़चिड़ेपन को लेशमात्र भी बाकी नहीं रहने दो। अपने आप को बिलकुल भुला दो। अपने व्यक्तित्व का एक भी अंश या भाव न रहने पावे। सेवा-कार्य के लिए पूर्ण आत्मसमर्पण की आवश्यकता है।

यदि आप में उपर्युक्त सद्गुण मौजूद हैं तो आप संसार के लिए पथप्रदर्शक और अमूल्य प्रसाद रूप हो। आप एक अलौकिक सुगंधित पुष्प हो जिसकी सुगंध देश-भर में व्याप्त हो जाएगी। यदि आपने ऐसा कर लिया तो समझ लो आपने बुद्धत्व की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लिया।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आत्मज्ञान और आत्मकल्याण पृष्ठ 5

👉 आत्मचिंतन के क्षण 7 Jan 2019

◾ जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।

◾ जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।

◾ मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।

◾ सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।

✍🏻 स्वामी विवेकानन्द

👉 आज का सद्चिंतन 7 Jan 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 7 Jan 2019


👉 ईश्वर से साक्षात्कार

एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था। वह बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में फिर कभी बताएगा। लेकिन चोर पर इसका असर नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता। एक दिन चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ गया। उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने वहां से जाएगा ही नहीं। साधु ने चोर को दूसरे दिन सुबह आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।

साधु ने कहा, ‘तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रखकर पहाड़ पर चढ़ना होगा। वहां पहुंचने पर ही ईश्वर के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।’ चोर के सिर पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा। इतना भार लेकर वह कुछ दूर ही चला तो उस बोझ से उसकी गर्दन दुखने लगी। उसने अपना कष्ट कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया।

थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन प्रतीत हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया। यही क्रम आगे भी चला। ज्यों-ज्यों चढ़ाई बढ़ी, थोडे़ पत्थरों को ले चलना भी मुश्किल हो रहा था। चोर बार-बार अपनी थकान व्यक्त कर रहा था। अंत में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊंचे शिखर पर जा पहुंचा।

साधु ने कहा, ‘जब तक तुम्हारे सिर पर पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊंचे शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव नहीं हो सका। पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके वैसे ही चढ़ाई सरल हो गई। इसी तरह पापों का बोझ सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।’ चोर ने साधु का आशय समझ लिया। उसने कहा, ‘आप ठीक कह रहे हैं।

मैं ईश्वर को पाना तो चाहता था पर अपने बुरे कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।’ उस दिन से चोर पूरी तरह बदल गया।

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...