मंगलवार, 21 जून 2022

👉 देने से ही मिलेगा

किसी को कुछ दीजिए या उसका किसी प्रकार का उपकार कीजिए तो बदले में उस व्यक्ति से किसी प्रकार की आशा न कीजिए। आपको जो कुछ देना हो दे दीजिए। वह हजार गुणा अधिक होकर आपके पास लौट आवेगा। परन्तु आपको उसके लौटने या न लौटने की चिन्ता ही न करनी चाहिए। अपने में देने की शक्ति रखिए, देते रहिए। देकर ही फल प्राप्त कर सकेंगे। यह बात सीख लीजिए कि सारा जीवन दे रहा है। प्रकृति देने के लिए आप को बाध्य करेगी। इसलिए प्रसन्नतापूर्वक दीजिए। आज हो या कल, आपको किसी न किसी दिन त्याग करना पड़ेगा ही।

जीवन में आप संचय करने के लिए आते हैं परन्तु प्रकृति आपका गला दबाकर मुट्ठी खुलवा लेती है। जो कुछ आपने ग्रहण किया है वह देना ही पड़ेगा, चाहे आपकी इच्छा हो या न हो। जैसे ही आपके मुँह से निकला कि ‘नहीं, मैं न दूँगा।’ उसी क्षण जोर का धक्का आता है। आप घायल हो जाते हैं। संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो जीवन की लम्बी दौड़ में प्रत्येक वस्तु देने, परित्याग करने के लिए बाध्य न हो। इस नियम के प्रतिकूल आचरण करने के लिए जो जितना ही प्रयत्न करता है वह अपने आपको उतना ही दुखी अनुभव करता है।

हमारी शोचनीय अवस्था का कारण यह है कि परित्याग करने का साहस हम नहीं करते इसी से हम दुखी हैं। ईंधन चला गया उसके बदले में हमें गर्मी मिलती है। सूर्य भगवान समुद्र से जल ग्रहण किया करते हैं उसे वर्षा के रूप में लौटाने के लिए आप ग्रहण करने और देने के यन्त्र हैं। आप ग्रहण करते हैं देने के लिए। इसलिए बदले में कुछ माँगिए नहीं। आप जितना भी देंगे, उतना ही लौटकर आपके पास आवेगा।

~ स्वामी विवेकानन्द
~ अखण्ड ज्योति फरवरी 1964 पृष्ठ 1

👉 जीवन के हर प्रभात का स्वागत करिये

जीवन का हर प्रभात एक सच्चे मित्र की तरह नित्य अभिनव उपहार लेकर आता है। वह चाहता है कि आप वे उपहार ग्रहण करें और उनसे अपने उस शुभ दिन का शृंगार करें। उसकी इच्छा रहती है कि जब दूसरे दिन वह आये तो आपका एक बढ़ा हुआ कदम देखे और उसके दिये हुए उपहारों के ठीक उपयोग के साथ नये उपहार लेने के लिए प्रस्तुत पाये! किन्तु जब आदर-पूर्वक उठकर उत्साह से उसका स्वागत नहीं किया जाता है तो वह निराशा होकर द्वार से लौट जाता है और दूसरे दिन आने में न उसको वह उत्साह रहता है और न उसके उपहारों में वह सौंदर्य! बार-बार निराश होने पर वह आता और अपरिचित राही की तरह द्वार के सामने से निकल जाता है।

ईश्वर मनुष्य को एक साथ इकठ्ठा जीवन न देकर क्षणों के रूप में देता है। एक नया क्षण देने के पूर्व वह पुराना क्षण वापिस ले लेता है। अतएव मिले हुए प्रत्येक क्षण का ठीक-ठीक सदुपयोग करो जिससे तुम्हें नित्य नए क्षण मिलते रहें।

पास ही क्षितिज तट पर तुम्हारा लक्ष्य जगमगा रहा है। किन्तु उसको तुम स्पष्ट नहीं देख पाते, क्योंकि उस पर तुम्हारी कमजोरियों के बादल छाये हुए हैं।

~रवीन्द्रनाथ टैगोर
~अखण्ड ज्योति फरवरी 1965 पृष्ठ 1*

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...