शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

👉 हमारे अंग बन जाओ

मित्रो ! हमारी एक ही महत्त्वाकांक्षा है कि हम सहस्रभुजा वाले सहस्रशीर्षा पुरुष बनना चाहते हैं। तुम सब हमारी भुजा बन जाओ, हमारे अंग बन जाओ, यह हमारी मन की बात है। गुरु-शिष्य एक-दूसरे से अपने मन की बात कहकर हल्के हो जाते हैं। हमने अपने मन की बात तुमसे कह दी। अब तुम पर निर्भर है कि तुम कितना हमारे बनते हो? पति-पत्नी की तरह, गुरु व शिष्य की आत्मा में भी परस्पर ब्याह होता है, दोनों एक-दूसरे से घुल-मिलकर एक हो जाते हैं। समर्पण का अर्थ है-दो का अस्तित्व मिटाकर एक हो जाना। तुम भी अपना अस्तित्व मिटाकर हमारे साथ मिला दो व अपनी क्षुद्र महात्त्वाकांक्षाओं को हमारी अनन्त आध्यात्मिक महात्त्वाकांक्षाओं में विलीन कर दो। जिसका अहं जिन्दा है, वह वेश्या है। जिसका अहं मिट गया, वह पवित्रता है। देखना है कि हमारी भुजा, आँख, मस्तिष्क बनने के लिए तुम कितना अपने अहं को गला पाते हो? इसके लिए निरहंकारी बनो। स्वाभिमानी तो होना चाहिए, पर निरहंकारी बनकर। निरहंकारी का प्रथम चिह्न है वाणी की मिठास। 

वाणी व्यक्तित्व का हथियार है। सामने वाले पर वार करना हो तो तलवार नहीं, कलाई नहीं, हिम्मत की पूछ होती है। हिम्मत न हो तो हाथ में तलवार भी हो, तो बेकार है। यदि वाणी सही है तो तुम्हारा व्यक्तित्व जीवन्त हो जाएगा, बोलने लगेगा व सामने वाले को अपना बना लेगा। अपनी विनम्रता, दूसरों का सम्मान व बोलने में मिठास, यही व्यक्तित्व के प्रमुख हथियार हैं। इनका सही उपयोग करोगे तो व्यक्तित्व वजनदार बनेगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 वाङमय-नं-६८-पेज-१.१४

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग ८७)

अन्तर्चक्षु खोल—देगा निद्रा का मर्म
    
सामान्य जनों के लिए सपने एक कौतूहल की भाँति होते हैं। परम्परावादी मनोवैज्ञानिक इनमें इच्छाओं के दमन को ढूँढते हैं। जबकि योग विज्ञानी इन्हें अन्तर्चेतना के नवीन आयामों के प्रवेश द्वार के रूप में देखते हैं। सच यही है कि सपना एक जबरदस्त क्रिया है- यह अधिक शक्तिशाली है और सामान्य क्रम में सोचने की तुलना में अधिक अर्थपूर्ण भी। क्योंकि सपनों का सम्बन्ध सामान्य ढंग से सोचने-विचारने वाले मन की तुलना में अधिक गहरे अंश से सम्बन्धित है। जब कोई नींद में जाता है, तब मन का वह हिस्सा जो दिन भर काम कर रहा था, थका होता है, निढाल होता है। यह मन का बहुत छोटा हिस्सा होता है, अचेतन की तुलना में प्रायः दशांश। अचेतन नौ गुना ज्यादा बड़ा और ज्यादा शक्तिशाली  है। हाँ, इसकी शक्तिमत्ता अतिचेतन की तुलना में जरूर कम है। परन्तु सामान्य चेतन मन की तुलना में इसकी शक्ति बहुत ज्यादा है।
    
यही वजह है कि जो समस्याएँ चेतन मन द्वारा हल नहीं होती, वे अचेतन द्वारा हल कर ली जाती हैं। जो समाधान जाग्रत् अवस्था में नहीं मिलते, वे प्रायः स्वप्न में मिल जाते हैं। बेन्जीन के अन्वेषक विज्ञानी काकुले की खोज कथा को सभी जानते हैं। वे बेन्जीन की रायायनिक संरचना को लेकर जिन दिनों काम कर रहे थे, उन दिनों उन्हें अनेकों प्रयासों के बाद भी कामयाबी नहीं मिली। अन्ततः एक दिन उन्हें स्वप्न में बेन्जीन की संरचना का रहस्य मिला। कारण इतना भर है कि अचेतन की गहरी परतों में समाधान के गहरे सूत्र छिपे हैं। पर ये मिलते उन्हीं को हैं, जो अपनी समस्या को, प्रश्न को इन परतों तक पहुँचा सकें।
    
इसी तरह से निद्रा भी बहुत ज्ञान दे सकती है। क्योंकि वहाँ अनंत सम्पत्ति का भण्डार है। बहुत से जन्मों का भण्डार। क्योंकि बहुत सी चीजों को हमने वहाँ संचित किया है। योग साधक के जीवन में इसका महत्त्व बढ़ जाता है। क्योंकि साधना की गहनता में चेतना की गहरी परतें आन्दोलित-आलोड़ित होती है। जप एवं ध्यान के सूक्ष्म स्पन्दन इन्हें लगातार स्पन्दित करते हैं। इन स्पन्दनों से जहाँ जन्म-जन्मान्तर के संचित संस्कार उद्घाटित होते हैं, वहीं विराट् चेतना की झलकें भी झलकती हैं। कभी-कभी तो विशिष्ट जनों से, सिद्ध योगियों से सान्निध्य भी बनता है।
    
साधकों के संसार में यह बड़ा सुपरिचित रहस्य है कि सूक्ष्म जगत् में विचरण करने वाले सिद्ध योगी साधकों तक अपने सन्देश, अपनी सहायताएँ पहुँचाने के लिए स्वप्न एवं निद्रा का ही सहारा लेते हैं। ऐसा करने के लिए वे साधक के मन को अपनी संकल्प ऊर्जा से निस्पन्द एवं एकाग्र कर देते हैं। और फिर संवाद की सहज स्थिति बन जाती है। इस स्थिति में वे साधक के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन और आने वाली परेशानियों के प्रति जागरूकता, अपेक्षित सावधानियाँ सभी कुछ बता देते हैं। यह कहना, सुनना इतना स्पष्ट होता है, जैसे कि सब कुछ जगते में ही कहा-सुना जाता है। यहाँ तक कि जगने पर भी इसकी स्मृति धुँधली एवं धूमिल नहीं पड़ती।
    
प्रगाढ़ निद्रा की साधना में भारी उपयोगिता है। इस अवस्था में योग साधक का ज्योति शरीर चेतना के विभिन्न आयामों की यात्रा कर लेता है। सद्गुरु के सान्निध्य में उसके सामने बोध के नवीन आयाम खुलते हैं। जब कभी साधक के जीवन में इस तरह की सूक्ष्म यात्राएँ होती हैं, तो इनके अनुभव बड़े अलौकिक होते हैं। उदाहरण के लिए हिमालय के दिव्य प्रदेशों में गमन, देवलोकों में गमन जैसी अनुभूतियाँ साधकों को अपनी निद्रा में सहज मिलती है। सच तो यह है कि उनके लिए निद्रा जागरण की तुलना में ज्यादा उपयोगी होती है। युगऋषि गुरुदेव कहते थे कि इन अनुभवों को अपने ध्यान का माध्यम बनाकर समाधि को सिद्ध किया जा सकता है।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १५१
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 Chintan Ke Kshan चिंतन के क्षण 18 Dec 2020

🔸 आकर्षक लगने वाली सभी वस्तुएं उपयोगी नहीं होतीं। सर्प, बिच्छू, काँतर, कनखजूरे जैसे प्राणी देखने में सुन्दर लगते हैं पर उनके गुणों को देखने पर पता चलता है  कि वे समीप आने वाले को कितना त्रास देते हैं ? प्रथम पहचान में ही न किसी का मित्र बनना चाहिए और न किसी को बनाना चाहिए। चरित्र के बारे में बारीकी से देखना, समझना और परखना चाहिए। मात्र शालीनता के प्रति आशा रखने वाले और आदर्शों का दृढ़तापूर्वक अवलम्बन करने वाले ही इस योग्य होते हैं कि उनसे घनिष्टता का सम्बन्ध स्थापित किया जाए।        

🔹 बड़ी बात दुर्जनों को समझाकर सज्जनता के मार्ग पर लाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उनके गिरोह को छिन्न-भ्न्न करने से लेकर घात लगाने की चलती प्रक्रिया में कारगर अवरोध खड़े कर देना। इसके लिए जनसाधारण को साहस जगाने वाला प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, प्रतिरोध कर सकने वाली साहसिक मंडलियों का गठन किया जाना चाहिए और सरकरी तंत्र तक यह आवाज पहुँचाई जानी चाहिए कि उसके भागीदार अधिकारी कर्मचारी उस कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करें जिसके लिए उन्होंने जिम्मेदारी कंधे पर उठाई है। इस कार्य में उन्हें जहाँ भी कठिनाई अनुभव हो रही हो, उसे दूर करने के लिए जागरूक नागरिकों को समुचित प्रयत्न करना चाहिए। जनता का साहस, सुरक्षा बलों का पराक्रम और सरकारी तंत्र का समुचित योगदान यदि मिलने लगे तो गुंडा गर्दी का उन्मूलन उतना कठिन न रहेगा जितना अब है।      

🔸 हर व्यक्ति अपने को ऐसा चुस्त-दुरुस्त रखे जिससे प्रतीत हो कि वह किसी भी आक्रमण का सामना करने के लिए तैयार है। यह कार्य प्राय: एकाकी होने पर नहीं बन पड़ता, समूह में अपनी शक्ति होती है। मिल-जुलकर रहने और एक-दूसरे की क्षमता बनाए रहने पर आधी मुसीबत टल जाती है। आक्रमण अपना हाथ रोक लेते हैं और बढ़ते कदमों को पीछे हटा लेने पर विवश होते हैं। निजी हौसला बुलन्द रखने के अतिरिक्त अपने जैसे ही साहसी लोगों का संगठन बना लेना चाहिए और उनके साथ-साथ रहने,  साथ-साथ उठने-बैठने के अवसर बनाते रहने चाहिए। बर्रों के छत्ते में हाथ डालने में डर लगता है, पर यदि वह अकेली पास आ डटे तो उसका कचूमर निकालने के लिए कोई भी तैयार हो जाता है। मधुमक्खियों के छ्त्ते से आमतौर से लोग बचकर ही निकलते हैं। बन्दर समूह में रहते हैं और एक को छेड़ने पर दूसरे भी उनकी सहायता के लिए इकट्ठे हो जाते हैं – इस कारण लोग बन्दरों के झुंड को छेड़ते नहीं वरन् उससे बचकर ही निकलने में अपनी भलाई देखते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...