पति की आर्थिक कमी अथवा कम कमाई की आलोचना तो कभी करनी ही नहीं चाहिये। जहाँ तक संभव हो ऐसी-व्यवस्था रखिये कि उसका आभास कम से कम ही हो। पति की आर्थिक आलोचना करने का अर्थ है उसका मन अपनी ओर से विमुख कर देना। बाजार अथवा बाहर जाते समय अपनी फरमाइश की सूची पेश करने और आने पर उनके लिए तलाशी लेने लगने का स्वभाव पति को रुष्ट कर देने वाला होता है।
पति के प्रिय मित्रों की अनुचित आलोचना करना अथवा उनका सम्बन्ध विच्छेद कराने का प्रयत्न करना पति के एक सुन्दर सुख को छीन लेने के बराबर है। पति के मित्रों को स्वजन और शत्रु को शत्रु मानना पत्नी का प्रमुख कर्तव्य है जो पत्नियाँ अपना स्वतन्त्र अस्तित्व मान कर केवल अपने मित्र को मित्र और अपने विरोधी को विरोधी मानती हैं, वे अपने दोनों के बीच खाई खोदने की भूल करती हैं।
इसके अतिरिक्त संकट के समय में भी पति के पास मुस्काती हुई ही रहो। पति के सम्मुख गन्दी दशा में रहने वाली स्त्रियाँ अपने प्रति घृणा को जन्म देती हैं। अनेक स्त्रियों का स्वभाव होता है कि पति के पीछे तो वह खूब सजी-धजी रहती है, बाहर सज-धज कर निकलती हैं लेकिन घर में खासतौर से पति के सम्मुख गंदा व पुराना कपड़ा पहन कर आती हैं। उनका ख्याल रहता है कि पति उनके पास कपड़ों की कमी समझ कर और नयी साड़ियाँ लाकर देगा।
किन्तु यह प्रयत्न उल्टा है। इससे पति उसे स्वभाव से गन्दा समझ कर कपड़े लाकर देना बेकार समझते हैं। सदा मधुर और मृदुल बोलिये। नारियों की मीठी वाणी और अनुकूल मुस्कान का जादू पुरुष पर अधिकार जमा लेता है। यदि इस प्रकार पति-पत्नी एक दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए अपने यह कतिपय बाह्य और मनोवैज्ञानिक कर्तव्यों का पालन करते रहें तो उनके बीच कभी कलह-क्लेश होने की सम्भावना ही न रहे और दाम्पत्य-जीवन का अधिक से अधिक आनन्द पा सकते हैं।
समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 28
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1968/July.28