मंगलवार, 11 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 11 July 2023

शास्त्र, समाज, धर्म और व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह समानता की समान सुविधाएँ उत्पन्न करें। हर व्यक्ति अपनी योग्यता और सामर्थ्य का पूरा-पूरा लाभ देने के लिए बाध्य रहे। यह कर्त्तव्य निष्ठा भले ही भावनात्मक स्तर पर अध्यात्म द्वारा उत्पन्न की जाय, भले ही शासन उसके लिए कठोर प्रतिबंध लगाये। तरीका जो भी हो, हर मानव प्राणी को पूरा श्रम करने और उपलब्ध साधनों के उपभोग करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए।

अपने नैतिक और सामाजिक कर्त्तव्यों की गहरी अनुभूति तभी हो सकती है, जब आत्म-निर्माण और लोक-निर्माण की दिशा में कुछ व्यावहारिक कदम उठाये जाएँ, कुछ कष्ट सहा जाय, कुछ त्याग किया जाय और कुछ ऐसा शौर्य, साहस प्रदर्शित किया जाय जिससे विकृत मान्यताओं को उखाड़ने और परिष्कृत आस्थाओं की जड़ जमाने का अवसर मिले। इसी प्रयोजन के लिए रचनात्मक कार्य पद्धति युग निर्माण योजना बना हुआ है।

वस्तुतः पारिश्रमिक लेकर तो किसी से कुछ भी कराया जा सकता है, लेकिन सेवा वृत्ति का विकास तब होता है, जब उसी प्रकार के कार्य निःस्वार्थ भावना से किये जायें। रचनात्मक कार्य पद्धति इसी का नाम है। जिसके अनुसार विभिन्न स्तर के व्यक्तियों को सत्प्रवृत्तियों के अभिवर्धन के लिए समय, श्रम, बुद्धि, प्रतिभा या साधनों का अनुदान देने के लिए बाध्य होना पड़ता हो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य-जीवन को सफल बनाने वाले कुछ स्वर्ण-सूत्र (भाग 1)

पति-पत्नी में कभी झगड़ा नहीं होना चाहिये। यह शोभनीय भी नहीं है और कल्याणकारी भी नहीं है। पति-पत्नी के झगड़े का मतलब है पूरे परिवार का नाश और उनके प्रगाढ़ प्रेम का अर्थ है, सुन्दर परिवार, सुखदायी गृहस्थ। पति-पत्नी के पारिवारिक लड़ाई-झगड़े के कुछ बाह्य और कुछ मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं। उनमें से अकर्तव्यशीलता भी एक विशेष कारण है। यदि पति-पत्नी परस्पर अपने बाह्य और मनोवैज्ञानिक कर्तव्यों को सावधानीपूर्वक पूरा करते रहें तो उन दोनों में कभी कोई लड़ाई-झगड़ा न हो।

बाह्य कर्तव्यों में पति का सबसे पहला कर्तव्य है कि वह पत्नी के स्वास्थ्य का अपनी ओर से पूरा ध्यान रखे। बहुत स्वार्थी पति अपनी सेवा लेने के साथ-साथ पत्नी को हर समय किसी न किसी काम में लगाये रखते हैं। उनका विचार रहता है कि पत्नी से जितना ज्यादा से ज्यादा काम लिया जा सके, लिया जाना चाहिये। वह तो काम करने और सेवा करने के लिये आई ही है। जगह पर पानी, जगह पर खाना, यहां तक कि कपड़े-लत्ते और किताब, कागज, स्याही, दवात, तक जगह पर ही लेते हैं।

किसी वस्तु अथवा किसी काम के लिए जगह से उठना जानते ही नहीं। यहाँ तक कि कलम पेंसिल तक उसी से बनवाते और फाउंटेनपेन में रोशनाई तक उससे हीं भरवाया करते हैं। इतना ही नहीं इन तुच्छ कामों के लिए भी उन्हें आराम करती हुई अथवा कोई और आवश्यक काम करती हुई पत्नी को उठा देने में जरा भी दया या संकोच नहीं करते। बहुत से बाबू साहबों को तो पत्नी ही कोट-पतलून और टाई-जूते पहनाती है और हर रोज जूते पर पालिश किया करती है।

रसोई और नाश्ते के सम्बन्ध में तो उसे जितना हैरान किया जा सकता है किया जाता है। और यह मुसीबत छुट्टी के दिन तो और भी बढ़ जाती है। जरा यह बनाना, थोड़ा वह भी बना लेना, आज सुबह इसकी चाय है, शाम को उसका भोजन है, बहुत दिन से यह नहीं बना, वह चीज खाये तो कई दिन हो गये- की ऐसी रेल लग जाती है कि बेचारी पत्नी को दिन भर दम मारने और चूल्हें, अंगीठी के पास से उठने की फुरसत नहीं मिलती। आप तो कोच, कुरसी या चारपाई पर पड़ गये और मिनट-मिनट पर तरह-तरह की फरमाइशें चलाने लगे। अपनी इस नवाबी में उन्हें इस बात का जरा भी ध्यान नहीं रहता है कि उनकी इस फैल-सूफी से बेचारी पत्नी की हड्डी-हड्डी टूट जाती है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 26

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...