गुरुवार, 17 नवंबर 2022

👉 धर्म

अब धर्म भी एक शौकीनों की चीज बनता चला जाता है। घर में तरह के सुसज्जा साध और जी बहलाने वाले उपकरण रहते हैं, उसी तरह धर्म को भी घर के एक कोने में स्थान देने की आवश्यकता समझी जाती है। शौकीनी सुसज्जा में विभिन्न स्तर की वस्तुयें इकट्ठी करना पड़ती हैं, सभ्यता ने धर्म को भी एक ऐसा ही उपकरण समझना आरंभ किया है और कितने ही लोग अपने कई तरह के शोकों में एक शौक धर्म चर्चा का भी सम्मिलित कर लेते हैं।

यह स्थिति धर्म जैसे जीवन तत्व का उपहास करना है। स्नान घर सजाकर रखने मात्र से स्वच्छता की आवश्यकता पूरी नहीं होती। रसोई घर में आवश्यक वस्तुयें जमा कर देने भर से क्या भूख बुझ सकती है। पलंग भर बिछा रहे तो क्या बिना सोये नींद पूरी हो जायेगी?

दूसरों की दृष्टी में धर्मात्मा बनकर अपनी आंतरिक अधार्मिकता को छिपाने के लिए आवरण ओढ़ना किस काम का? यदि धर्म के प्रति सचमुच आस्था हो तो उसे न केवल दृष्टिकोण में वरन् क्रिया कलाप में भी समाविष्ट करना चाहिए। अन्यथा यह कम बुरा है कि हम अपना अधार्मिकता को उसी रूप में खुला रहने दें और धार्मिक बनने का दंभ न करें। इससे अधर्म के साथ दंभ को जोड़ने की दुहरी तो न बढ़ेगी।

✍🏻 रविन्द्र नाथ टैगोर
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1973 पृष्ठ 11

👉 पहले दो तब मिलेगा।

संसार का यह अचल नियम कितना सत्य है कि “पहले दो तब मिलेगा” पेट में पहले भोजन पहुँचाया जाता है तब वह हमें रक्त जैसी अमूल्य वस्तु प्रदान करता है, घड़ी में पहले चाबी दी जाती है तब वह हमें ठीक समय देती है, कुंए में पहले बर्तन डालते हैं तब उसमें पानी आता है, दान देने वाले पहले देते हैं तब यश और कीर्ति के भागी बनते हैं, ब्याज खाने वाले पहले रकम देते हैं तब उन्हें ब्याज की कौड़ियाँ मिलती हैं, चक्की में पहले गेहूँ डालते हैं, तब आटा मिलता है, किसान पहले बीज बोता है तब उसे कई गुना मिलता है।

व्यापारी पहले माल खरीदने में अपनी रकम लगाता है तब वह मुनाफा पाता है, पेड़ों को देखिये पहले वे बिना किसी आनाकानी के मीठे फल और पत्ते देते हैं तब उसकी जगह नये पत्ते और फल प्राप्त करते हैं, बिजली का पहले बटन दबाते हैं तब प्रकाश मिलता है, समुद्र पहले बादलों को अपना जल देता है तब उसे इन्द्र कई गुना वापिस लौटा देता है, पहले किसी की सेवा करते हैं तब वह हमें कुछ देता है, किसी के हृदय पर शासन करने के लिए पहले अपना हृदय देना पड़ता है तब उसका हृदय प्राप्त कर सकते हैं।

संसार की किसी जड़ चेतन वस्तु को लीजिये “पहले देने पर ही मिलेगा” यहाँ तक कि मन्द बुद्धि पशु जाति को ही लीजिये कुत्ते को रोटी और प्यार देने पर ही वह आपकी आज्ञा का पालन कर सकेगा, अन्यथा काट खाने को दौड़ेगा। भोले भाले अज्ञान बालक का हृदय भी देखिये पहले वह गेंद बिना किसी संकोच के धरती पर फेंक देता है लेकिन उस गेंद को धरती अपने पास नहीं रखती है बल्कि बालक को ही वापस लौटा देती है।

📖 अखण्ड ज्योति- फरवरी 1944 पृष्ठ 12

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1944/February/v1.12

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...