मंगलवार, 19 मार्च 2019

👉 घर

"रेनू की शादी हुये, पाँच साल हो गयें थें, उसके पति थोड़ा कम बोलतें थे पर बड़े सुशील और संस्कारी थें, माता_पिता जैसे सास, ससुर और एक छोटी सी नंनद, और एक नन्ही सी परी, भरा पूरा परिवार था, दिन खुशी से बित रहा था।

आज रेनू बीते दिनों को लेकर बैठी थी, कैसे उसके पिताजी ने बिना माँगे 30 लाख रूपयें अपने दामाद के नाम कर दियें, जिससे उसकी बेटी खुश रहे, कैसे उसके माता_पिता ने बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की, बहुत ही आनंदमय तरीके से रेनू का विवाह हुआ था।

खैर बात ये नही थी, बात तो ये थी, रेनू  के बड़े भाई ने, अपने माता-पिता को घर से निकाल दिया था, क्यूकि पैसे तो उनके पास बचे नही थें, जितने थे उन्होने रेनू की शादी में लगा दियें थे, फिर भला बच्चे माँ_बाप को क्यू रखने लगे, रेनू के माता पिता एक मंदिर मे रूके थे, रेनू आज उनसे मिल के आयी थी, और बड़ी उदास रहने लगी थी, आखिर लड़की थी, अपने माता_पिता के लिए कैसे दुख नही होता, कितने नाजों से पाला था, उसके पिताजी ने बिल्कुल अपनी गुडिया बनाकर रखा था, आज वही माता_पिता मंदिर के किसी कोने में भूखे प्यासे पड़ें थे।

रेनू अपने पति से बात करना चाहती थी, वो अपने माता_पिता को घर ले आए, पर वहाँ हिम्मत नही कर पा रही थी, क्यूकि उनके पति कम बोलते थे, अधिकतर चुप रहते थे, जैसे तैसे रात हुई रेनू के पति और पूरा परिवार खाने के टेबल पर बैठा था, रेनू की ऑखे सहमी थी, उसने डरते हुये अपने पति से कहा, सुनिये जी, भाईया भाभी ने मम्मी-पापा को घर से निकाल दिया हैं, वो मंदिर में पड़े है, आप कहें तो उनको घर ले आऊ, रेनू के पति ने कुछ नही कहा, और खाना खत्म कर के अपने कमरे में चला गया, सब लोग अभी तक खाना खा रहे थे, पर रेनू के मुख से एक निवाला भी नही उतरा था, उसे बस यही चिंता सता रही थी अब क्या होगा, इन्होने भी कुछ नही कहा, रेनू रूहासी सी ऑख लिए सबको खाना परोस रही थी।

थोड़ी देर बाद रेनू के पति कमरे से बाहर आए, और रेनू के हाथ में नोटो का बंडल देते हुये कहा, इससे मम्मी, डैडी के लिए एक घर खरीद दो, और उनसे कहना, वो किसी बात की फ्रिक ना करें मैं हूं, रेनू ने बात काटते हुये कहा, आपके पास इतने पैसे कहा से आए जी?

रेनू के पति ने कहा, ये तुम्हारे पापा के दिये गये ही पैसे है, मेरे नही थे, इसलिए मैंने हाथ तक नही लगाए, वैसे भी उन्होने ये पैसे मुझे जबरदस्ती दिये थे, शायद उनको पता था एक दिन ऐसा आयेगा, रेनू के सास_ससुर अपने बेटे को गर्व भरी नजरो से देखने लगें, और उनके बेटे ने भी उनसे कहा, अम्मा जी बाबूजी सब ठीक है ना?

उसके अम्मा बाबूजी ने कहा बड़ा नेक ख्याल है बेटा, हम तुम्हें बचपन से जानते हैं, तुझे पता है, अगर बहू अपने माता_पिता को घर ले आयी, तो उनके माता पिता शर्म से सर नही उठा पायेंगे, की बेटी के घर में रह रहे, और जी नही पाएगें, इसलिए तुमने अलग घर दिलाने का फैसला किया हैं, और रही बात इस दहेज के पैसे की, तो हमें कभी इसकी जरूरत नही पड़ी, क्यूकि तुमने कभी हमें किसी चीज की कमी होने नही दी, खुश रहो बेटा कहकर रेनू और उसके पति को छोड़ सब सोने चले गयें।

रेनू के पति ने फिर कहा, अगर और तुम्हें पैसों की जरूरत हो तो मुझे बताना, और अपने माता_पिता को बिल्कुल मत बताना घर खरीदने को पैसे कहा से आए, कुछ भी बहाना कर देना, वरना वो अपने को दिल ही दिल में कोसते रहेंगें, चलो अच्छा अब मैं सोने जा रहा, मुझे सुबह दफ्तर जाना हैं, रेनू का पति कमरे में चला गया, और रेनू खुद को कोसने लगी, मन ही मन ना जाने उसने क्या क्या सोच लिया था, मेरे पति ने दहेज के पैसे लिए है, क्या वो मदद नही करेंगे करना ही पड़ेगा, वरना मैं भी उनके माँ-बाप की सेवा नही करूगी, रेनू सब समझ चुकी थी, की उसके पति कम बोलते हैं, पर उससे ज्यादा कही समझतें हैं।

रेनू उठी और अपने पति के पास गयी, माफी मांगने, उसने अपने पति से सब बता दिया, उसके पति ने कहा कोई बात नही होता हैं, तुम्हारे जगह मैं भी होता तो यही सोचता, रेनू की खुशी का कोई ठिकाना नही था, एक तरफ उसके माँ_बाप की परेशानी दूर दूसरी तरफ, उसके पति ने माफ कर दिया।

रेनू ने खुश और शरमाते हुये अपने पति से कहा, मैं आपको गले लगा लूं, उसके पति ने हट्टहास करते हुये कहा, मुझे अपने कपड़े गंदे नही करने, दोनो हंसने लगें।
और शायद रेनू को अपने कम बोलने वालें पति का ज्यादा प्यार समझ आ गया,,,,,,,,,

👉 आज का सद्चिंतन 19 March 2019

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 19 March 2019


👉 Amrit Chintan

Don’t be over ambitious. Otherwise you will loose your normal mental peace. Learn to work hard for progress and be kind and helpful to others. If you will love others you will get the same in return.

📖 A. J. Sept, 1989

Our call is not for some worship of Gayatri Anusthan of Novratri is but we have a distant vision of life. That vision is that in the new coming era. We have great opportunities for our life. We need your help and that is you also become a instrument to develop our Nation.

📖 Vangmay No. 36, p 4.20

Prayers, worship and other rituals become important tools when we attach our commitments for the wisher of the Almighty. Then the prayers show all results described in the books of mythology.

~ Lokmanya Tilak

My scholars!
There is no other way then to face and pushing back the terrorist of this time. Wild animals do not understand the civic language. Bad people also do not listen to any good advice. Even the incarnated soul on this earth had to fight with people like Ravan and Kans in the time of Lord Rama and Krishna. The fight of Lanka and Mahabharat could not be avoided. To save the self and the humanity even God had to fight to establish peace and harmony in life.

📖 Pragyopanishad p. 2.27

The most important component humanity is his character. His ideality, courage makes him a successful man. It is that foundation on which grows the personality of a rishi divinity and no less than a God.

👉 दीपक का आश्वासन

सूरज विदा होने को था- अंधकार की तमिस्रा सन्निकट थी। इतने में एक टिमटिमाता दीपक आगे आया और सूरज से बोल उठा-'भगवन्! आप सहर्ष पधारें। मैं निरन्तर जलते रहने का व्रत नहीं तोडूँगा जैसे आपने चलने का व्रत नहीं तोड़ा है। आपके अभाव में थोड़ा ही सही, पर प्रकाश देकर अंधकार को मिटाने का मैं पूरा-पूरा प्रयास करूँगा। ' छोटे से दीपक का आश्वासन सुनकर सूर्य भगवान ने उसके साहस की सराहना की व सहर्ष विदा हुए।

प्रयत्न भले ही छोटे हों पर प्रभु के कार्यों में ऐसे ही भावनाशीलों का थोड़ा-थोड़ा अंश मिलकर युगान्तरकारी कार्य कर दिखाता है।

आदर्शवादी दुस्साहस की ही प्रशंसा होती है। वह सत्साहस के रूप में उत्पन्न होता है और असंख्यों को अनुप्राणित करता है। श्रेय किस व्यक्ति को मिला यह बात नितान्त गौण है। यह तो झण्डा लेकर आगे चलने वाले की फोटो के समान है। जबकि उस सैन्यदल में अनेकों का शौर्य, पुरुषार्थ झण्डाधारी की तुलना में कम नहीं, अधिक होता है।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 48 से 51

उवाच भगवांस्तात! दिग्भ्रान्तान् दर्शयाग्रत: ।
यथार्थताया आलोकं सन्मार्गे गन्तुमेव च॥४८॥
तर्कतथ्ययुतं मार्गं त्वं प्रदर्शय साम्प्रतम् ।
उपायं च द्वितीयं सं तदाधारसमुद्भवम्॥ ४९॥
उत्साहं सरले कार्ये योजयाभ्यस्ततां यत: ।
परिचितिं युगधर्में च गच्छेयुर्मानवा: समे॥५०॥
चरणौ द्वाविमौ पूर्णावाधारं प्रगतेर्मम ।
अवतारक्रियाकर्त्ता चेतना सा युगान्तरा॥५१॥

टीका- भगवान् बोले- हे तात्? सर्वप्रथम दिग्भ्रान्तों को यथार्थता का आलोक दिखाना और सन्मार्ग अपनाने के लिए तर्क और तथ्यों सहित मार्गदर्शन करना है, दूसरा उपाय इस आधार पर उभरे हुए उत्साह को किसी सरल कार्यक्रम में जुटा देना है ताकि युग धर्म से वे परिचित और अभ्यस्त हो सकें? इन दो चरणों के उठ जाने पर आगे की प्रगति का आधार मेरी अवतरण प्रक्रिया-युगान्तरीय चेतना स्वयमेव सम्पन्न कर लेगी॥४८-५१॥

व्याख्या- युग परिवर्तन का कार्य योजनाबद्ध ढंग से ही किया जा सकता है। सबसे पहले तो सुधारकों, अग्रगामियों को अपने सहायक ढूँढ़ने के लिए निकलना होता है, उन्हें उँगली पकड़कर चलना सिखाना पड़ता है। जब वे अपनी दिशा समझ लेते हैं, उच्चस्तरीय पथ पर चलने के लिए वे सहमत हो जाते हैं, तब उन्हें सुनियोजित कार्य पद्धति समझाकर उनके उत्साह को क्रियारूप देना होता है। यही नीति हर अवतार की रही है। इतना बन पड़ने पर शेष कार्य वह चेतन-सत्ता स्वयं कर लेती है।

समस्या तब उठ खड़ी होती है, जब व्यक्ति ईश्वरीय सत्ता की इच्छा-आकांशा जानते हुए भी व्यामोह में फँसे दिशा भूले की तरह जीवन बिताते हैं अथवा उद्देश्य को जानते हुए भी अपने उत्साह को सही नियोजित नहीं कर पाते।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 22

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...