गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

👉 शान्ति तो अन्दर ही खोजनी पड़ती है।

शान्ति की खोज में चलने वाले पथिक को यह जान लेना चाहिए कि अकेले रहने या जंगल पर्वतों में निवास करने से शांति का कोई सम्बन्ध नहीं। यदि ऐसा होता, तो अकेले रहने वाले जीव जन्तुओं को शान्ति मिल गई होती और जंगल पर्वतों में रहने वाली अन्य जातियाँ कब की शान्ति प्राप्त कर चुकी होतीं।

अशान्ति का कारण है आन्तरिक दुर्बलता। स्वार्थी मनुष्य बहुत चाहते हैं और उसमें कमी रहने पर खिन्न होते हैं। अहंकारी का क्षोभ ही उसे जलाता रहता है। कायर मनुष्य हिलते हुए पत्ते से भी डरता है और उसे अपना भविष्य अन्धकार से घिरा दीखता है। असंयमी की तृष्णा कभी शान्त नहीं होती । इस कुचक्र में फँसा हुआ मनुष्य सदा विक्षुब्ध ही रहेगा भले ही उसने अपना निवास सुनसान एकान्त में बना लिया हो।

नदी या पर्वत सुहावने अवश्य लगते हैं। विश्राम या जलवायु की दृष्टि से वे स्वास्थ्यकर हो सकते हैं पर शान्ति का उनमें निवास नहीं। चेतन आत्मा को यह जड़ पदार्थ भला शान्ति कैसे दे पावेंगे? शान्ति अन्दर रहती है और जिसने उसे पाया है उसे अन्दर ही मिली है। अशान्ति उत्पन्न करने वाली विकृतियों को जब तक परास्त न किया जाय तब तक शान्ति का दर्शन नहीं हो सकता, भले ही कितने ही सुरम्य स्थानों में कोई निवास क्यों न करता रहे।

~ सन्त तिरुवल्लुवर
~ अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1964 पृष्ठ 1

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👉 ईश्वर की नहीं अपनी फिक्र करो!

ईश्वर को खोजते लोग मेरे पास आते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि ईश्वर तो प्रतिक्षण और प्रत्येक स्थान पर है। उसे खोजने कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं। जागो और देखो और जागकर जो भी देखा जाता है, वह सब परमात्मा ही है।

सूफी कवि हफीज अपने गुरु के आश्रम में था। और भी बहुत से शिष्य वहाँ थे। एक रात्रि गुरु ने सारे शिष्यों को शाँत ध्यानस्थ हो बैठने को कहा। आधी रात गए गुरु ने धीमे से बुलाया-’हफीज’! सुनते ही तत्क्षण हफीज उठ कर आया। गुरु ने जो उसे बताना था, बताया। फिर थोड़ी देर बाद उसने किसी और को बुलाया लेकिन आया हफीज ही। इस भाँति दस बार उसने बुलाया लेकिन बार-बार आया हफीज ही क्योंकि शेष सब तो सो रहे थे।

परमात्मा भी प्रतिक्षण प्रत्येक को बुला रहा है- सब दिशाओं से, सब मार्गों से उसकी आवाज आ रही है लेकिन हम तो सोए हुए हैं। जो जागता है, वह उसे सुनता और जागता है केवल वही उसे पाता है।

इसलिए मैं कहता हूँ कि ईश्वर की फिक्र मत करो। उसकी चिन्ता व्यर्थ है। चिन्ता करो स्वयं को लगाने की। निद्रा में जो हम जान रहे हैं वह ईश्वर का ही विकृत रूप है। यह विकृत अनुभव ही संसार है। जागते ही संसार नहीं पाया जाता है और जो पाता है वही सत्य है।

अखण्ड ज्योति 1967 फरवरी पृष्ठ 1

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👉 ईश्वर प्राप्ति कठिन नहीं, सरल है।

ईश्वर की प्राप्ति सरल है क्योंकि वह हमारे निकटतम है। जो वस्तु समीप ही विद्यमान है, उसे उपलब्ध करने में कोई कठिनाई क्यों होनी चाहिए? ईश्वर इतना निष्ठुर भी नहीं है जिसे बहुत अनुनय विनय के पश्चात् ही मनाया या प्रसन्न किया जा सके। जिस करुणामय प्रभु ने अपनी महत्ती कृपा का अनुदान पग-पग पर दे रखा है, वह अपने किसी पुत्र को अपना साक्षात्कार एवं सान्निध्य प्राप्त करने में वंचित रखना चाहे, उसकी आकाँक्षा में विघ्न उत्पन्न करे वह हो ही नहीं सकता।

हमारे और ईश्वर के बीच में संकीर्णता एवं तुच्छता का एक छोटा-सा पर्दा है। जिसे माया का अज्ञान कहते हैं- प्रभु प्राप्ति में एक मात्र अड़चन यही है। इस अड़चन को दूर कर लेना ही विविध आध्यात्म साधनाओं का उद्देश्य है। तृष्णा और वासनाओं के तूफान में मनुष्य की आध्यात्मिक आकाँक्षाएं धूमिल हो जाती हैं। अस्तु वह जीवन-निर्माण एवं आत्म-विकास के लिए न तो ध्यान दे पाता है और न प्रयत्न कर पाता है। आज के तुच्छ स्वार्थों में निमग्न लोभी मनुष्य भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए तत्पर नहीं होता।

अहंकार और अदूरदर्शिता को यदि छोड़ा जा सके, अपने-पन का दायरा बड़ा बनाकर यदि लोक हित को अपना हित मानने का साहस किया जा सके तो इतने- से ही ईश्वर प्राप्ति हो सकती है। ओछी आकाँक्षाएँ और संकीर्ण कामनाओं से ऊँचे उठकर यदि इस विशाल विश्व में अपनी आत्मा का दर्शन किया जा सके- औरों को सुखी बनाने के लिये भी यदि आत्म-सुख की तरह प्रयत्नशील रहा जा सके तो ईश्वर की प्राप्ति किसी को भी हो सकती है कठिन आत्म-चिन्तन ही ईश्वर साक्षात्कार नहीं।

~ महर्षि रमण
~ अखण्ड ज्योति दिसंबर 1964 पृष्ठ 1

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...