गुरुवार, 28 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 Sep 2023

🔶 किसी को दोषी बताकर अपने को और निराश न करें। परिस्थितियों से समझौता करें और उन्हें अनुकूल बनायें। कुछ रास्ते बन्द हो जाने पर भी कुछ खुले रहते हैं। ऐसा नहीं है कि सारे रास्ते ही बन्द हो जाये। जब आप नयापन खोजेंगे तो आशा की नई किरण फूटने लगेगी। जीवन में प्रतिद्वन्द्व न जगायें, किसी से घृणा न करें, प्रेमपूर्ण व्यवहार रखें। हर्बर्ट स्वूप लिखता है, सफलता का रहस्य तो मैं नहीं बता सकता, मगर असफलताओं का रहस्य जरूर बता सकता हूँ। वह है हर किसी को खुश करने की कोशिश।’ जीवन को आवश्यक कार्यों में व्यक्त रखें और अनावश्यक कार्यों में उलझकर व्यस्त रहने का रोना न रोयें। आशावादी बनकर अपने जीवन और जन-जीवन की प्रेरणा श्रोत बनें।

🔷 जीवन में कई बार अनपेक्षित परिस्थितियाँ आती हैं, जिनके कारण अपने प्रति विश्वास डगमगाने लगता है और व्यक्ति उन परिस्थितियों में किंकर्तव्य विमूढ़ होकर उपलब्ध साधनों का उपयोग करने में संकोच करने लगता है अथवा यह सोचने लगता है कि वह इन साधनों के योग्य नहीं है। इस सम्बन्ध में एक विचारक का कथन है कि, ‘दुनिया के कई लोग अपने आपको उन सौभाग्यशाली लोगों से अलग समझते हैं जो महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कर चुके हैं। ऐसा सोचना कितना हानिकारक हैं, इसका अनुमान सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऐसे विचार मात्र व्यक्ति को कई ऊँचाइयों पर पहुँचने से रोक देते हैं। अपने आपको बौना समझने वाला व्यक्ति देवता कैसे बन सकता है ?”    
                                              
🔶 इसमें कोई सन्देह नहीं कि कोई भी व्यक्ति केवल उतनी ही सफलताएँ प्राप्त कर सकता है या उतनी ही उपलब्धियाँ अर्जित कर सकता है, जितनी कि वह चाहता है, चाहने को तो लोग न जाने क्या-क्या चाहते, न जाने क्या-क्या आकाँक्षाएँ और इच्छाएँ रखते हैं, पर वैसा चाहना और बात है तथा उसका फलित होना और बात। लोग चाहते हैं कि उसे पास खूब सम्पत्ति जमा हो, पर सौ में से दस प्रतिशत भी सच्चे मन से यह नहीं चाहते कि वे सम्पन्न बनें। उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि वे संपन्न भी बन सकते हैं। कोई व्यक्ति दरिद्रता से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे दरिद्रता में वैसी ही घुटन अनुभव करना चाहिए जैसी कि डूबने वाला व्यक्ति पानी में डूबते समय करता है, पर वैसी घुटन कहाँ अनुभव होती है ?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 कर्त्तव्य पालन का अविरल आनन्द

समराँगण की लीला में तलवार आनन्द पाती है, तीर अपनी उड़ान और सनसनाहट में मजा लेता है। पृथ्वी इस आकाश में अपना अन्धाधुन्ध चक्कर लगाने के आनन्द में विभोर है, सूर्यनारायण अपने जगमगाते वैभव में तथा अपनी सनातन गति में सदा सम्राट्-सदृश आनन्द का भोग कर रहा है, तो फिर सचेतन यन्त्र, तू भी अपने नियत कर्म को करने का आनन्द उठा।

तलवार अपने बनाये जाने की माँग नहीं करती, न अपने उपयोगकर्ता के कार्य में बाधा ही डालती है, और टूट जाने पर विलाप भी नहीं करती। बनाए जाने में एक प्रकार का आनन्द है, प्रयुक्त किए जाने में भी एक आनन्द है। इसी के सम आनन्द की तू खोज कर।

क्योंकि तूने यन्त्र को कार्यकर्ता और स्वामी समझने की भूल की है और क्योंकि तू अपनी अज्ञानमयी इच्छा के कारण, अपनी निजी उपयोगिता का विचार करना पसंद करता है, तुझे दुःख और यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं, बार-बार लाल दहकती हुई भट्टी के नरक में घुसना पड़ता है, और यह जब तक कि तू अपना मनुष्योचित पाठ पूरा नहीं कर लेगा।

✍🏻 योगी अरविन्द
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/April/v2.1

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...