शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 Oct 2023

आपमें से हर आदमी को हम यह काम सौंपते हैं कि आप हमारे बच्चे के तरीके से हमारे मिशन को चलाइए। बन्द मत होने दीजिए। हम तो अपनी विदाई ले जाएंगे, लेकिन जिम्मेदारी आपके पास आएगी। आप कपूत निकलेंगे तो फिर लोग आपकी बहुत निन्दा करेंगे और हमारी निन्दा करेंगे। कबीर का बच्चा ऐसा हुआ था जो कबीर के रास्ते पर चलता नहीं था तो सारी दुनिया ने उससे यह कहा—‘बूढ़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल’ आपको कमाल कहा जाएगा और यह कहा जाएगा कि कबीर तो अच्छे आदमी थे, लेकिन उनकी संतानें दो कौड़ी की भी नहीं है।

परिजनो! आप हमारी वंश परम्परा को जानिए। अगर हमको यह मालूम पड़ा कि आपने हमारी परम्परा नहीं निबाही और अपना व्यक्तिगत ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया और अपना व्यक्तिगत अहंकार, अपनी व्यक्तिगत यश-कामना और व्यक्तिगत धन-संग्रह करने का सिलसिला शुरू कर दिया, व्यक्तिगत रूप से बड़ा आदमी बनना शुरू कर दिया, तो हमारी आंखों से आंसू टपकेंगे और वह आंसू आपको चैन से नहीं बैठने देंगे। आपको हैरान कर देंगे।
                                              
हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में सीमाबद्ध है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप हमारे विचारों को फैलाने में सहायता कीजिए। अब हमको नई पीढ़ी चाहिए। हमारी विचारधारा उन तक पहुंचाइए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 अध्यात्म का सूक्ष्म-विश्लेषण

अध्यात्म क्या है? जीवन का शीर्षासन है। आप क्या इसे बाजीगरी समझते हैं कि यह कर लूँगा, वह कर लूँगा। इसमें ऐसा कुछ नहीं है, वरन इसमें जीवन की दिशा उलटी जाती है, जीवन को पलटा जाता है। दुनिया वाले लोगों के सोचने, करने का जो तरीका है, आकांक्षाओं, इच्छाओं का जो ढंग है, उससे आध्यात्मिक जीवन की प्रक्रियाएं भिन्न हैं, जिन्हें अलग ढंग से करना पड़ता है।

पूजा-उपासना के बारे में, सिद्धि-चमत्कारों के बारे में, देवताओं के दर्शन के बारे में, ऋद्धि-सिद्धि पाने के बारे में जो तरह-तरह के खेल-खिलवाड़ आप करते रहते हैं, उसमें न पड़ें तो अच्छा है, क्योंकि आपके लिए यह वह कठिन पड़ेगा। आप पहली मंजिल पर ही टक्कर खाकर चकनाचूर हो जाएँगे। जब आपसे ब्रह्मचर्य के लिए कहा जायेगा कि शारीरिक ब्रह्मचर्य उतना आवश्यक नहीं जितना कि मानसिक ब्रह्मचर्य आवश्यक है, तब आप दाँत निकाल देंगे और कहेंगे कि शारीरिक ब्रह्मचर्य तो हमसे साधता नहीं, फिर मानसिक ब्रह्मचर्य की बात ही अलग है! चौबीस घंटे हमारा दिमाग और आँखें दुराचार में लगी रहती हैं। जब आपकी सारी शक्ति इसी में खर्च हो जायेगी तब फिर आपका सहस्रार-चक्र (कुण्डलिनी-जागरण की अंतिम अवस्था) कहाँ से जगेगा? सहस्रार-चक्र में लगने वाली सारी शक्ति इसी में लय कर देंगे, तब फिर वह जागेगा कैसे? सहस्रार को जाग्रत करने वाला जो प्रकाश है, वह तो आपकी आँखों के रास्ते तरंगों के जरिये नष्ट हो जायेगा। इसके अन्दर जो गर्मी थी, ऊर्जा थी वह तो आपने ख़त्म कर दी।

इसी तरह आहार के आधार पर जो आपका रक्त बनता है और जिससे बनता है मन; तमोगुणी अन्न, अनीति-बेईमानी का कमाया हुआ अन्न, हराम का कमाया हुआ अन्न खाकर के आपने उसे तमोगुणी बना दिया है। उसे आप अध्यात्म में, भगवान में स्थिर कैसे कर पाएंगे?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...