बुधवार, 1 सितंबर 2021

👉 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति (भाग ५६)

असीम को खोजें

तारे और नक्षत्र में यह अन्तर है कि तारा अपनी रोशनी से चमकता है जब कि नक्षत्रों में अपनी रोशनी नहीं होती। वे तारकों की धूप के प्रकाश में आते हैं तभी चमकते हैं। अपने सौर मण्डल में केवल एक ही सूर्य है शेष 9 नक्षत्र हैं। ब्रह्माण्ड की तुलना में अपने सूर्य का सीमा क्षेत्र बहुत छोटा है पर पृथ्वी की तुलना में वह बहुत बड़ा है। नक्षत्रों के अपने उपग्रह होते हैं जैसे पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा। ग्रह स्थिति के 12 चन्द्रमा हैं।

जिस प्रकार अपने सौर-मण्डल के नव-ग्रह सूर्य-तारक के साथ जुड़े हैं उसी प्रकार ब्रह्माण्ड के अगणित तारक अपनी-अपनी नीहारिकाएं जो अरबों की संख्या में हैं, जुड़े हैं। उनमें भीतर ऐसी हलचल चलती रहती है जिसके कारण कुछ समय बाद भयंकर विस्फोट होते हैं और अन्तर्भूत पदार्थों में से कुछ टुकड़े बाहर छिटक कर स्वतन्त्र तारक के रूप में विकसित होते हैं। इन्हीं नवोदित तारकों का नाम ‘नोवा और सुपर नोवा’ दिया गया है। जिस प्रकार बिल्ली हर साल कई-कई बच्चे देती है इसी प्रकार से नीहारिकाएं भी थोड़े-थोड़े दिनों बाद प्रसूता होती हैं और विस्फोट जैसी भयानक प्रसव पीड़ा के साथ नव-तारकों को जन्म देती हैं। बच्चों की सारी हरकतें वे सिलसिले होती हैं ऐसा ही कुछ ऊंट-पटांग यह नवोदित तारे भी करते रहते हैं। जब वे घिस-पीट कर ठीक हो जाते हैं। शैशव से आगे बढ़कर किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तब उनकी व्यवस्था क्रमबद्ध हो जाती है। तब तक उनका फुलाव, सिकुड़न, रुदन, उपद्रव शयन सब कुछ अचंभे जैसा ही है। छोटे बच्चे जैसे बार-बार टट्टी कर देते हैं उसी प्रकार इन नवोदित तारकों की गरमा-गरम गैस भी फटती चिटखती रहती है और उससे भी ग्रह, उपग्रह, उल्का धूमकेतु आदि न जाने क्या-क्या अन्तरिक्षीय फुलझड़ियों का सृजन विसर्जन होता रहता है। इसके अतिरिक्त इन बच्चों में लड़-झगड़ और मारपीट भी कम नहीं होती। निश्चित व्यवस्था का कार्यक्षेत्र न बन पाने के कारण उनके टकराव भी होते रहते हैं और कभी-कभी तो यह टकराव ऐसे विचित्र होते हैं कि दोनों पक्ष अपना अस्तित्व गंवा बैठें और फिर उनके ध्वंसावशेष से कुछ-कुछ और नवीन संरचना सामने आये।

आकाश की नापतोल मीलों की संख्या में करना कौड़ियां बिछाकर मुहरों का हिसाब करने बैठने की तरह उपहासास्पद होगा। इस प्रकार तो इतनी विन्दियां प्रयोग करनी पड़ेंगी कि ज्योतिर्विदों को बाध्य विन्दियों से ही भरने पड़ें।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ ९२
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी

👉 भक्तिगाथा (भाग ५६)

भक्ति वही, जिसमें सारी चाहतें मिट जाएँ
    
युग बदला-युग के साथ दृश्य भी बदले। त्रेता-द्वापर में परिवर्तित हुआ। मैं हिमालय की गुहा में तपोलीन हो गया। पर मेरा मन हमेशा ही इस धुन में रहता था कि माता गायत्री जब भी जहाँ जिस भी रूप में अवतीर्ण होंगी, मैं अवश्य उनका आशीष लूँगा। उनके प्रत्यक्ष दर्शन जरूर करूँगा। द्वापर युग में मैंने अनुभव किया- महामाया ने इस बार कई रूप धरे हैं। उन्होंने जन्म भी लिया है और प्रकट भी हुई हैं। रुक्मिणी के रूप में भी वही हैं, वही वृषभानुसुता के रूप में ब्रज में पधारी हैं। वही महामाया-भगवती पूर्णमासी बनकर ब्रजभूमि की रक्षा का भार सम्हालें हैं। वही जगदम्बा गोपकुमारियों एवं गोपबालाओं के रूप में विहार कर रही हैं।
    
मैं धन्य हुआ, अनुग्रहीत हुआ, कृतकृत्य हुआ, वेदमाता को इतने रूपों में निहार कर मेरे मुख से स्तुति महामन्त्र उच्चारित होने लगा-
विद्याः स्मरन्तास्तव देवि भेदाः

स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्य परापरोक्ति॥
    
हे देवी! सम्पूर्ण विद्याएँ, तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी भी स्त्रियाँ हैं वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्बे एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थों से परे एवं परावाणी हो।
    
मेरी स्तुति से भावमयी माता प्रसन्न हुईं और उन्होंने दिखाया कि किस तरह वृषभानुदुलारी राधा में सभी कुछ विलीन हो गया। मुझे भान हुआ कि श्रीराधा ही जगन्माता का प्रधान लीला स्वरूप हैंै। माँं के अन्य स्वरूप उन्हीं से प्रकट होते और उन्हीं में लय होते हैं। श्रीराधा के दर्शन के लिए मैं ब्रज भी गया। वहाँ मैंने प्रेम की उन साकार मूर्ति को परमात्मा के परात्पर पावन प्रेम के साकार सघनस्वरूप देखा। हालांकि! प्रत्यक्ष में तो वह सामान्य गोपकन्या ही दिखती थीं पर उन लीलामयी ने मुझ पर अपूर्व दया करके अपने यथार्थ स्वरूप के दर्शन दिए। उन्होंने यह भी बोध कराया कि ब्रज में गोपबालाएँ और ग्वाल-बाल ही नहीं, वहाँ पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति यहाँ तक कि पर्वत, सरिता, धरती के धूलिकण भी कृष्ण के लिए ही सर्वस्व अर्पित हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 भक्तिगाथा नारद भक्तिसूत्र का कथा भाष्य पृष्ठ १०२

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...