शनिवार, 3 सितंबर 2016

👉 Samadhi Ke Sopan 👉 समाधि के सोपान (भाग 31)

🔵 तुम्हारे लिए मेरा केवल एक ही -सन्देश है: - स्मरण रखो कि तुम आत्मा हो। तुम्हारे पीछे शक्ति है। निष्ठावान होना मुक्त होना है। अपने आध्यात्मिक उत्तराधिकार के प्रति प्रमाणिक रहो क्योंकि प्रमाणिक होना मुक्त होने के समान है। तुम्हारा प्रत्येक पद आगे बढ़ने की दिशा में ही हो तथा जैसे जैसे तुम जीवन के राजपथ में बढ़ते जाओगे वैसे वैसे ही तुम अधिकाधिक अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करते जाओगे। यदि तुम्हारे पीछे प्रामाणिकता है तो तुम सभी व्यक्तियों का सामना कर सकते हो। स्वयं के प्रति ईमानदार बनो तब तुम्हारे शब्द सत्य की ध्वनि से गुंजित होंगे, तुम अनुभुति की भाषा बोलोगे तथा तुम वह शक्ति प्राप्त करोगे, जो दूसरों को भी पूर्ण बना देगी।

🔵 प्रत्येक व्यक्ति अपने चरित्र की शक्ति विकीर्ण करता है। स्वयं को छिपा नहीं सकता। यदि किसी व्यक्ति में कोई शारीरिक विकृत है तो सभी लोग उसे देख पाते हैं। उसी प्रकार यदि तुम में आध्यात्मिक विकृति होगी तो सभी लोग उसे अन्तःप्ररेणा से अपने आप जान लेंगे। क्योंकि जब तुम आत्मा की बात करोगे तब लोग यह अनुभव करेंगे कि तुम जो कह रहे हो वह तुम्हारे हृदय की बात नहीं है। तुम उन्हें आध्यात्मिक जीवन का कुछ भी नहीं दे पाओगे क्योंकि तुम स्वयं आध्यात्मिक जीवन में प्रतिष्ठित नहीं हो, न ही तुम्हारे पास आध्यात्मिकता ही है। अत: यदि तुम परमात्मा के सन्देशवाहक होना चाहते हो तो आत्मसुधार के प्रयत्न में लग जाओ।

🔴 अपनी मूल प्रवृत्तियों का अध्यात्मीकरण करो। निष्ठावान बनो। किन्तु मैं तुमसे कहूँगा कि अपनी अनुभूतियों को गोपन रखो। भैंस के आगे बीन न बजाओ। यदि तुम आत्मा की आश्चर्यजनक अवस्थाओं का अनुभव करते हो तो -मौन रखो जिससे कि तुम्हारी बातचीत से उस अनुभूति की तीव्रता कम न हो जाय। तुमने जो उपलब्ध किया है उस पर विचार करो। सभी चीजो के साथ आत्मा की शांति में प्रवेश करो। कृपण व्यक्ति जिस प्रकार अपने धन की रक्षा करता है उसी प्रकार अपनी अनुभूति और ज्ञान की रक्षा करो। स्वयं का संग्रह करो। और जब तुम कुछ समय तक मौन का अभ्यास कर चुकोगे तब जिस तत्त्व से तुम्हारा हृदय परिपूर्ण हो गया है वह छलकने लगेगा और तब तुम मनुष्य के लिए संपत्ति तथा शक्ति हो उठोगे। 

🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...