गुरुवार, 26 अगस्त 2021

👉 Man Ka Sanyam Karen मन का संयम करें

मन ही सबसे प्रबल है। मन की प्रेरणा से मनुष्य की जीवन दिशा बनती है। मन की शक्तियों से वह बड़े काम करने में समर्थ होता है। मन ही नीचे गिराता है, मन ही ऊँचा उठाता है। असंयमी और उच्छृंखल मन से बढ़कर अपना और कोई शत्रु नहीं जिसका मन विवेक और कर्त्तव्य को ध्यान में रखते हुए सन्मार्ग पर चलने का अभ्यस्त हो गया तो वह देवताओं के सान्निध्य जैसा सुख कर होता है।

मन की गतिविधियों पर सूक्ष्म दृष्टि से निरंतर ध्यान रखे। उसे कुमार्गगामी न होने दे। दुर्भावनाओं को प्रवेश न करने दे। वासना और तृष्णा से चित्त वृत्तियों को हटावे। किसी का अहित न सोचे। अहंकार को न पढ़ने दें। पाप से मन को बचाये रहना और उसे पुण्य कार्यों में प्रवृत्त रखना यही मानव जीवन का सबसे बढ़ा पुरुषार्थ है।

~ ब्रह्मर्षि वशिष्ठ
📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1963 पृष्ठ 1

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...