मंगलवार, 19 जुलाई 2016

👉 गुरु पूर्णिमा विशेष- (अन्तिम भाग ) 👉 जनम-जनम के साक्षी व साथी हैं हमारे गुरुदेव


🔴 दीक्षा की प्रार्थना लेकर जब दिलीप राय उन सन्त के पास पहुँचे। तो वह इस पर बहुत हँसे और कहने लगे- तो तुम हमें श्री अरविन्द से बड़ा योगी समझते हो। अरे वह तुम पर शक्तिपात नहीं कर रहे, यह भी उनकी कृपा है। दिलीप को आश्चर्य हुआ- ये सन्त इन सब बातों को किस तरह से जानते हैं। पर वे महापुरुष कहे जा रहे थे, तुम्हारे पेट में भयानक फोड़ा है। अचानक शक्तिपात से यह फट सकता है, और तुम्हारी मौत हो सकती है। इसलिए तुम्हारे गुरु पहले इस फोड़े को ठीक कर रहे हैं। इसके ठीक हो जाने पर वह तुम्हें शक्तिपात दीक्षा देंगे। अपने इस कथन को पूरा करते हुए उन योगी ने दिलीप से कहा- मालूम है, तुम्हारी ये बातें मुझे कैसे पता चली? अरे अभी तुम्हारे आने से थोड़ी देर पहले सूक्ष्म शरीर से महर्षि अरविन्द स्वयं आए थे। उन्होंने ही मुझे तुम्हारे बारे में सारी बातें बतायी।

🔵 उन सन्त की बातें सुनकर दिलीप तो अवाक् रह गये। अपने शिष्य वत्सल गुरु की करुणा को अनुभव कर उनका हृदय भर आया। पर ये बातें तो महर्षि उनसे भी कह सकते थे, फिर कहा क्यों नहीं? यह सवाल जब उन्होंने वापस पहुँच कर श्री अरविन्द से पूछा, तो वह हँसते हुए बोले, यह तू अपने आप से पूछ, क्या तू मेरी बातों पर आसानी से भरोसा कर लेता। दिलीप को लगा, हाँ यह बात भी सही है। निश्चित ही मुझे भरोसा नहीं होता। पर अब भरोसा हो गया। इस भरोसे का परिणाम भी उन्हें मिला निश्चित समय पर श्री अरविन्द ने उनकी इच्छा पूरी की।

🔴 यह सत्य कथा सुनाकर गुरुदेव बोले- बेटा! गुरु को अपने हर शिष्य के बारे में सब कुछ मालूम होता है। वह प्रत्येक शिष्य के जन्मों-जन्मों का साक्षी और साथी है। किसके लिए उसे क्या करना है, कब करना है वह बेहतर जानता है। सच्चे शिष्य को अपनी किसी बात के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। उसका काम है सम्पूर्ण रूप से गुरु को समर्पण और उन पर भरोसा। इतना कहकर वह हँसने लगे, तू यही कर। मैं तेरे लिए उपयुक्त समय पर सब कर दूँगा। जितना तू अपने लिए सोचता है, उससे कहीं ज्यादा कर दूँगा।

🔵 मुझे अपने हर बच्चे का ध्यान है। अपनी बात को बीच में रोककर अपनी देह की ओर इशारा करते हुए बोले- बेटा! मेरा यह शरीर रहे या न रहे, पर मैं अपने प्रत्येक शिष्य को पूर्णता तक पहुँचाऊँगा। समय के अनुरूप सबके लिए सब करूंगा। किसी को भी चिन्तित-परेशान होने की जरूरत नहीं है। गुरुदेव के यह वचन गुरु पूर्णिमा पर प्रत्येक शिष्य के लिए महामंत्र के समान हैं। अपने गुरु के आश्रय में बैठे किसी शिष्य के लिए कोई चिन्ता और भय नहीं है।

🌹 अखण्ड ज्योति जुलाई 2003 पृष्ठ 38
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/2003/July.38

👉 गुरु पूर्णिमा विशेष- (भाग 3 ) 👉 जनम-जनम के साक्षी व साथी हैं हमारे गुरुदेव

🔵 इतना कहकर वह फिर से ठहर गए। और उनकी आँखों में करुणा छलक आयी। वह करुणा जो माँ की आँखों में अपने कमजोर-दुर्बल शिशु को देखकर उभरती है। इस छलकती करुणा के साथ वह बोले- यदि इसी समय तुझे ब्रह्मज्ञान करा दूँ, तो जानता है तेरा क्या होगा? बेटा! तू विक्षिप्त और पागल होकर नंगा घूमेगा। छोटे-छोटे लड़के तुझे पत्थर मारेंगे। सुनने वाले को यह बात बड़ी अटपटी सी लगी। इसका भेद उसे समझ में न आया। करुणा की घनीभूत मूर्ति गुरुदेव उसे समझाते हुए बोले- बेटा! तू इसे इस तरह से समझ। दि 220 वोल्ट वाले पतले तार में 11,000 वोल्ट की बिजली गुजार दी जाय, तो जानता है क्या होगा? अपने ही इस सवाल का जवाब देते हुए वह बोले- न केवल वह पतला तार उड़ जाएगा, बल्कि दीवारें तक फट जायगी।

🔴 ब्रह्म चेतना 11,000 वोल्ट की प्रचण्ड विद्युत् धारा की तरह है। और सामान्य मनुष्य चेतना 220 वोल्ट की भाँति दुर्बल है। इसलिए ब्रह्मज्ञान पाने के लिए पहले तप करके अपने शरीर और मन को बहुत मजबूत बनाना पड़ता है। इन्हें ऐसा फौलादी बनाना होता है, ताकि ये ब्रह्म चेतना की अनुभूति का प्रबल वेग सहन कर सकें। इसके बिना भारी गड़बड़ हो जायगी। जबरदस्ती ब्रह्मज्ञान कराने के चक्कर में शरीर और मन बिखर जाएँगे। भक्त की चाहत को ठुकराते हुए भी भगवान् के मन में केवल निष्कलुष करुणा का निर्मल स्रोत ही बह रहा था। सदा वरदायी प्रभु वरदान न देकर अपनी कृपा ही बरसा रहे थे।

🔵 इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए उन्होंने एक सत्य घटना का विवरण सुनाया। यह घटना महर्षि अरविन्द और उनके शिष्य दिलीप कुमार राय के बारे में थी। विश्व विख्यात संगीतकार दिलीप राय उन दिनों श्री अरविन्द से दीक्षा पाने के लिए जोर जबरदस्ती करते थे। वह ऐसी दीक्षा चाहते थे, जिसमें श्री अरविन्द दीक्षा के साथ ही उन पर शक्तिपात करें। उनके इस अनुरोध को महर्षि हर बार टाल देते थे। ऐसा कई बार हो गया। निराश दिलीप ने सोचा कि इनसे कुछ काम बनने वाला नहीं है। चलो किसी दूसरे गुरु की शरण में जाएँ। और उन्होंने एक महात्मा की खोज कर ली। ये सन्त पाण्डिचेरी से काफी दूर एक सुनसान स्थान में रहते थे।

🌹 अखण्ड ज्योति जुलाई 2003 पृष्ठ 39
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/2003/July.39

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...