सोमवार, 14 अगस्त 2017

👉 हमारा युग निर्माण सत्संकल्प (भाग 43)

🌹  अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।

🔴 जिसे हम बुरा समझते हैं, उसे स्वीकार न करना सत्याग्रह है और यह किसी भी प्रियजन, संबंधी या बुजुर्ग के साथ किया जा सकता है। इसमें अनुचित या अधर्म रत्तीभर नहीं है। इतिहास में ऐसे उदाहरण पग-पग पर भरे पड़े हैं। प्रह्लाद, भरत, विभीषण, बलि आदि की अवज्ञा प्रख्यात है। अर्जुन को गुरुजनों से लड़ना पड़ा था। मीरा ने पति का कहना नहीं माना था। मोहग्रस्त अभिभावक अपने बच्चों को अनेक तरह के कुकृत्य करने के लिए विवश करते हैं। बेईमानी का धंधा करने वाले बुजुर्ग अपने बच्चों से भी वही कराते हैं। अपनी मूढ़ता और रूढ़िवादिता की रीति-नीति अपनाने के लिए भी दबाते हैं, न मानने पर नाराज होते हैं, अवज्ञा का आरोप लगाते हैं, ऐसी दशा में किंकर्तव्यविमूढ़ होने की जरूरत नहीं है। आदर्श यही रहना चाहिए कि केवल औचित्य को ही स्वीकार किया जाएगा, चाहे वह किसी के पक्ष में जाता हो।
 
🔵 अनौचित्य करे ही हालत में अस्वीकार किया जाएगा, चाहे किसी ने भी उसके लिए कितना ही दबाव क्यों न डाला हो। आज की सामाजिक कुरीतियों के अंधानुकरण में पुरानी पीढ़ी ही अग्रणी है। बच्चों का जल्दी विवाह कर उन्हें स्वास्थ्य तथा शिक्षा से वंचित करना, उनका मिथ्या मोह मात्र है। नम्रतापूर्वक ऐसे अवसरों पर अपनी हठ, असहमति व्यक्त की जा सकती है। दृढ़तापूर्वक स्पष्ट शब्दों में यह कह दिया जाए कि हमें किसी भी शर्त पर खर्चीला विवाहोन्माद स्वीकार नहीं। जब करना होगा तो बिना दहेज, जेवर तथा बिना धूमधाम का विवाह ही करेंगे। देखने भर में यह अवज्ञा है, पर वस्तुतः इसमें हर किसी का केवल हित साधन ही सन्निहित है। इसलिए बुरा लगने पर भी कड़वी दवा की तरह यह अवज्ञा सबके लिए श्रेयस्कर है। अतएव उसे किसी प्रकार अनुचित अथवा अधर्म नहीं कहा जा सकता।
    
🔴 दोस्ती के नाम पर लोग सिगरेट, शराब, जुआ, सिनेमा आदि के कुमार्ग पर घसीटना चाहते हैं। ऐसे अवसरों पर भी अपनी सहमति को स्पष्ट और कड़े शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं। दोस्ती का मतलब मित्र को कुमार्ग से छुड़ाना है। पथ-भ्रष्ट करने के लिए घसीट ले जाना नहीं। इसी प्रकार कर्ज माँगने वाले, भीख के लिए अड़ने वाले, अनीति का विरोध न करके चुप रहने का आग्रह करने वाले लोग आए दिन सामने आते रहते हैं और चतुरतापूर्वक अपने तर्क तथा प्रतिभा का ऐसा प्रयोग करते हैं कि अनिच्छा होने पर भी उनके प्रभाव में आकर वैसा ही करने को विवश होते हैं। ऐसे अवसरों पर हमारा साहस इतना प्रखर होना चाहिए कि नम्र किंतु स्पष्ट शब्दों में इनकार कर सकें। इनकार, असहयोग, विरोध और संघर्ष इन चार शस्त्रों से हम अनीति और विवेक का सामना कर सकते हैं। सत्य और न्याय के लिए इन शस्त्रों का प्रयोग हमें साहसी शूरवीर योद्धा की तरह करते भी रहना चाहिए।
 
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.59

http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.9

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🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...