बुधवार, 28 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 June 2023

किसी को हमारा स्मारक बनाना हो तो वह वृक्षा लगाकर बनाया जा सकता है। वृक्षा जैसा उदार, सहिष्णु और शान्त जीवन जीने की शिक्षा हमने पाई। उन्हीं जैसा जीवनक्रम लोग अपना सकें तो बहुत है। हमारी प्रवृत्ति, जीवन विद्या और मनोभूमि का परिचय वृक्षों से अधिक और कोई नहीं दे सकता। अतएव वे ही हमोर स्मारक हो सकते हैं।

गायत्री परिवार में बुद्धिमानों की, भावनाशीलों की, प्रतिभावनों की, साधना संपन्नों की कमी नहीं, पर देखते हैं कि उत्कृष्टता को व्यवहार में उतारने के लिए जिस साहस की आवश्यकता है, उसे वे जुटा नहीं पाते। सोचते बहुत हैं, पर करने का समय आता है तो बगलें झाँकने लगते हैं। यदि ऐसा न होता तो अब तक अपने ही परिवार में से इतनी प्रतिभाएँ निकल पड़तीं जो कम से कम भारत भूमि को नर-रत्नों की खदान होने का श्रेय पुनः दिला देतीं।

स्मरण रखा जाय हम चरित्र निष्ठा और समाज निष्ठा का आन्दोलन करने चले हैं। यह लेखनी या वाणी से नहीं, उपदेशकों की व्यक्तिगत चरित्र निष्ठा में से ही संभव होगा। उसमें कमी पड़ी तो बकझक, विडम्बना भले ही होती रहे, लक्ष्य की दिशा में एक कदम भी बढ़ सकना संभव न होगा। हममें से अग्रिम पंक्ति में जो भी खड़े हों, उन्हें अपने तथा अपने साथियों के संबंध में अत्यन्त पैनी दृष्टि रखनी चाहिए कि आदर्शवादी चरित्र निष्ठा में कहीं कोई कमी तो नहीं आ रही है। यदि आ रही हो तो उसका तत्काल पूरे साहस के साथ उन्मूलन करना चाहिए और यही हमारी स्पष्ट नीति रहनी चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 जीवन के उतार-चढावों पर उद्विग्न न हों। (भाग 2)

अयोग्य विद्यार्थी का न तो कोई वर्तमान होता है और न भविष्य। वह निकम्मा, चाहे दुःख हो, चाहे प्रसन्न कोई अन्तर नहीं पड़ता। इस प्रकार पतन द्वारा पाई असफलता तो दुःख का हेतु है, किन्तु पुरुषार्थ से अलंकृत प्रयत्न की असफलता दुःख खेद का नहीं, चिन्तन−मनन और अनुभव का विषय है। आशा, उत्साह, साहस और धैर्य की परीक्षा का प्रसंग है। प्रयत्न की असफलता स्वयं एक परीक्षा है। मनुष्य को उसे स्वीकार करना और उत्तीर्ण करना ही चाहिए।

प्रायः आर्थिक उतार लोगों को बहुत दुःखी बना देता है। जिसका लंबा−चौड़ा व्यापार चलता हो। लाखों रुपये वर्ष की आमदनी होती हो, सहसा उसका रोजगार ठप हो जाए, कोई लंबा घाटा पड़ जाए, हैसियत, बिगड़ जाए और वह असाधारण से साधारण स्थिति में आ गिरे तो वह अवश्य ही दुःखी और शोक−ग्रस्त रहने लगेगा। फिर भी इस आर्थिक उतार का शोक करना उचित नहीं। क्योंकि शोक करने से स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। यदि शोक करने और दुःखी रहने से स्थिति में सुधार की आशा हो तो एक बार शोक करना और दुःखी रहना उस स्थिति में किसी हद तक उचित कहा जा सकता है। किन्तु यह सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि विपन्नता का उपचार दुःखी रहना नहीं, बल्कि उत्साहपूर्वक पुरुषार्थ करना ही है। तथापि लोग उल्टा आचरण करते हैं। यह कम खेद की बात नहीं है।

सम्पन्नता से विपन्नता में आ जाने पर लोग क्यों दुःखी रहते हैं? इसके अनेक कारण होते हैं। इसका एक कारण तो है अपनी वर्तमान स्थिति से विगत स्थिति की तुलना करना। दूसरा कारण है दूसरों की संपन्न स्थिति को सामने रखकर अपनी स्थिति देखना। तीसरा कारण है, सामाजिक अप्रतिष्ठा की आशंका करना चौथा कारण है लज्जा और आत्म−हीनता का भाव रखना। और पाँचवाँ कारण है, विगत वैभव का व्यामोह। यह और इसी प्रकार के अन्य कारणोंवश लोग अपने आर्थिक उतार पर दुःखी और शोकग्रस्त रहा करते हैं। किन्तु यदि इन कारणों पर गहराई से विचार किया जाए तो पता चलेगा कि इन कारणों को सामने रखकर अपनी विपन्नता पर शोक करना बड़ी हल्की और निरर्थक बात है। इनमें से कोई कारण तो ऐसा नहीं, जिसे शोक का उचित सम्पादक माना जा सके।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1970 पृष्ठ 56
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1970/January/v1.56


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...