शनिवार, 12 नवंबर 2022

👉 इन तीन का ध्यान रखिए (भाग 1)

👉 इन तीन का ध्यान रखिए:- उत्पादन की जड़, क्रोध, स्वाद

उत्पादन की जड़:- इन तीनों को सदैव अपने अधिकार में रखिये- अपना क्रोध, अपनी जिह्वा और अपनी वासना। ये तीनों ही भयंकर उत्पादक की जड़ हैं।

क्रोध:- क्रोध के आवेश में मनुष्य कत्ल करने तक नहीं रुकता। ऊटपटाँग बक जाता है और बाद में हाथ मल मल कर पछताता है।

स्वाद:- जीभ के स्वाद के लालच में भक्ष्य अभक्ष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। अनेक व्यक्ति चटपटे मसालों, चाट पकौड़ी और मिठाइयाँ खा खाकर अपनी पाचन शक्ति सदा के लिये नष्ट कर डालते हैं।

सबसे बड़े मूर्ख वे हैं जो अनियंत्रित वासना के शिकार हैं।  विषय-वासना के वश में मनुष्य का नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पतन तो होता ही है, साथ ही गृहस्थ सुख, स्वास्थ्य और वीर्य नष्ट होता है। समाज ऐसे भोग विलासी पुरुष को घृणा की दृष्टि से अवलोकता है। गुरुजन उसका तिरस्कार करते हैं। ऐसे पापी मदहोश को स्वास्थ्य लक्ष्मी और आरोग्य सदा के लिये त्याग देते हैं। इन तीनों ही शत्रुओं पर पूरा पूरा नियंत्रण रखिये।

👉 इन तीनों को झिड़को:- निर्दयता, घमण्ड और कृतघ्नता-

ये मन के मैल हैं। इनसे बुद्धि प्राप्त करने में फंस जाती है। निर्दयी व्यक्ति अविवेकी और अदूरदर्शी होता है। वह दया और सहानुभूति का मर्म नहीं समझता।

घमण्डी हमेशा एक विशेष प्रकार के नशे में मस्त रहता है, धन, बल, बुद्धि में अपने समान किसी को नहीं समझता। कृतघ्न पुरुष दूसरों के उपकार को शीघ्र ही भूल कर अपने स्वार्थ के वशीभूत रहता है। वह केवल अपना ही लाभ देखता है। वस्तुतः उस अविवेकी का हृदय सदैव मलीन और स्वार्थ-पंक में कलुषित रहता है।

दूसरे के किए हुए उपकार को मानने तथा उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करने में हमारे आत्मिक गुण-विनम्रता, सहिष्णुता और उदारता प्रकट होते हैं।

📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 13

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👉 सुगंधित जीवन

मित्रो ! विद्वान पुरुष सुगंधित पुष्पों के समान हैं। वे जहाँ जाते हैं, वहीं आनंद साथ ले जाते हैं। उनका सभी जगह घर है और सभी जगह स्वदेश है। विद्या धन है। अन्य वस्तुएँ तो उसकी समता में बहुत ही तुच्छ हैं। यह धन ऐसा है जो अगले जन्मों तक भी साथ रहता है। विद्या द्वारा संस्कारित की हुई बुद्घि आगामी जन्मों में क्रमश: उन्नति ही करती जाती है और उससे जीवन उच्चतम बनते हुए पूर्णता पाता है।
  
कुएँ को जितना गहरा खोदा जाए, उसमें से उतना ही अधिक जल प्राप्त होता जाता है। जितना अधिक अध्ययन किया जाए उतना ही ज्ञानवान बना जा सकता है। विश्व क्या है और इसमेंं कितनी आनंदमयी शक्ति भरी हुई है, इसे वही जान सकता है, जिसने विद्या पढ़ी है। ऐसी अनुपम संपत्ति का उपार्जन करने में न जाने क्यों लोग आलस्य करते हैं? आयु का कोई प्रश्न नहीं है, चाहे मनुष्य वृद्ध हो जाए या मरने के लिए चारपाई पर पड़ा हो तो भी विद्या प्राप्त करने में उसे उत्साहित होना चाहिए क्योंकि ज्ञान तो जन्म-जन्मांतरों तक साथ जाने वाली वस्तु है।
  
 वे मनुष्य बड़े अभागे हैं, जो विद्या पढऩे में जी चुराते हैं। भिखारी को दाता के सामने जैसे तुच्छ बनना पड़ता है, ऐसे ही यदि तुम्हें शिक्षकों के सामने तुच्छ बनना पड़े तो भी शिक्षा प्राप्त करना ही कत्र्तव्य है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...